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मूलारावना
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अर्थ - रणांगण में बायोकी दृष्टि होनेपर भी जिसने दृढ कतर धारण किया हूँ ऐसा शूरपुरुष भिन नहीं होता है अर्थात वह शरवृष्टिमें संचार करता हुआ भी अक्षतही रहता है वैसे समितिरूपी कवच धारण करनेवाले मुनरूपी योद्धा भी हिंसादि वाणोंसे अक्षत ही रहते हैं. जीवनिकाय में बिहार करते हुए भी वे पापोंसे अलिप्त ही रहते हैं.
जत्थेव चरइचालो परिहारहू वि चरइ तत्थेव ||
बज्झदि पुण सो बालो परिहारण्हू त्रि मुच्चइ सो ॥ १२०३ ॥ बालमरति यत्रैव तत्रैष परिहारवित् ।।
ते कल्मषेबल इतरो मुच्यते पुनः ।। १२४२ ।।
विजयोदया-- जत्थेष चरह मालो यत्रैव क्षेत्रे चरति जीपपरिहारकमानभिः । परिहारण्णू व जीवाधा रामशोऽपि तत्रैव चरति । तथापि बज्झदि सो पुण पालो षभ्यते पुनरसी ज्ञानबालधारिवालम्बासी परिवारण्ड परिदारशः । मुमुज्यते कर्मपात् ॥
समानदेशं चारिणोरप्याशियोः पापघावधौ दर्शयति---
मूलारा -- जत्थेव यत्रेव क्षेत्रे । चरदि गमनादिक्रियासु प्रवर्तते । गाली वधपरिहारकमानभिज्ञः । यज्झवि पापैर्बध्यते । मुजदि पापलेपान्मुच्यते पापैर्न लिय वेत्यर्थः ।।
अर्थ-जीवी बाधाका परिहार करनेका क्रम जिसको ज्ञात नहीं हुआ है ऐसा अझ जीव जिस जगह में रहता है उसी जगहमें जीवबाधाका परिहार करनेवाले मुनिमी रहते हैं. परंतु अज्ञ जीव कर्मसे बद्ध होता है अर्थात् ज्ञानसे बाल और चारित्रसे बाल ऐसा अज्ञ कर्मबद्ध होता है परंतु ज्ञानी और चारित्रवान् जीव कर्मबद्ध होता नहीं है.
१५.१
उक्तमर्थमुपसंहरायुत्तरगाथया -
तथा चेट्टिदुकामो जया तझ्या भवाहिं तं समिदो ||
समिदो हु अण्णणं णादियदि खवेदि पौराणं ॥ १२०४ ॥
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