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आवास।
माTI वुटरस' सम्यक्त्वाचारमकसदररहितस्य । आस बदि कर्मविपरिणतियोग्यतामागछति प्रविशति च । आसवणीणायात
आस्रवणशीलायां नायि ॥ १६३५
अर्थ-जो जीव इस संसारसमुद्रम संवररहित प्रवृत्ति करता है. अर्थात जो जीय सम्यकत्व, संयम, उसमक्षमा, माश्य, आजप, रसीप इन परिणामोस रहित है उसमें कर्मरूपी जल प्रवेश करता है. जैसे छिद्रसहित नौकामें पानीका प्रवेश होनेस वह समुद्रम दृवती है पैंसा यह आत्माभी संसाररूपी समुद्र में कर्मरूपी जल प्रवेश करनेसे हचता है.
धूली हुत्तुष्पिदगते लग्गा मलो जधा होदि ।। मिच्छत्तादिसिणेहोछिदरस कम्म तधा होदि ॥ १८२३ ।। कर्मसंबंधता जाता रागद्वेषाक्तचेतसः ।।
स्नेहाभ्यरूशरीरस्य रजोराशिरिवानिशम् ॥ १८९४ ॥ विजयोदया-धूली पोठुनुप्पिगत्ते लग्गा धूली महाभ्यक्तशरीरलग्ना । जहा मलो होवि यथा मलं भवति । मिच्छत्तादिसिणेहोलिदस्स मिय्यात्वासंयपकषायपरिणामलेदाभ्यक्तस्यात्मनः प्रदेशेववस्थित कर्मप्रायोग्य द्रव्यं । तहा तथा कम्मं होनि तथा कर्म भवति । एतदुक्तं भवति-यात्मपरिणामाग्मिध्यान्घादिकात विशिए पुद्गलद्रव्य क.मत्वेन परिणम तीति कर्मवपर्यायहेतुरात्मनः परिणाम आपच रयर्थः ।।
मूलारा-णेहुत्तुस्पिदगत्तत्ति तेलाद्यभ्य रक्तशरीरे । मिच्छत्तादिसिणे होल्लिदस्स मिथ्यात्वासंयमकायस्नेहास्यक्ताय जीवस्य । फम्म प्रदेशेष्ववस्थितं कर्भप्रायोग्य द्रव्यं मलो इत्यनुवृत्तमलो भवतीति सम्बंधः । एतदुक्तं भवनि-आमपरिणामामिथ्यात्वादिकाद्विशिष्टं पुद्रलद्रवं कर्मत्वेन परिणमते तेन विशिष्टस्य पुद्गलद्रव्यस्य कर्मत्वपर्याय हे तुमित्यादिजीवपरिणाम आस्रव इत्यर्थः।
___अर्थ-जैसे जिसने अपने सागमें तेल लगाया है ऐसे मनुष्य के शरीरपर धूली आकर चिपक जाती है. और वह मल बनती है वैसे मिथ्यात्व, असंयम, कषायात्मक परिणामरूपी तैलस लिप्त हुए आत्मप्रदेशों में बैठा हुआ कर्मरूप परिणतिको प्राप्त होनेवाला पुद्गल द्रव्य कर्म बन जाता है. इस विवचनका यह अभिप्राय है-मिध्यात्वादि
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