Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1879
________________ मूलाराधना १८६८ Pr हित करती है. संपूर्ण दोषोंको हटाती है और चंद्रकी शोभाको नष्ट करती है अर्थात् चंद्रकी शोभा भी इसके सा मने फीकी मालूम पडती है. सकलगुणसंपना पापरहित यह आराधना हम लोगों को सदा सुखी करेउगवुर्ग गुरुदुरितदयं वरधुमनीयमाना || हर्तु मोहान्धकारं कवलितनिखिला तिग्मरश्मीयमाना ॥ निःशेषं वस्तु दातुं भवदभिमतं कामधेनूयमाना ॥ निधा या विधसाममितगतिसुखं शीघ्रमाराधना वः ।। २२५५ ॥ १६ जो अत्युच्च दुःखरूपी पर्वतों से घिरा हुआ है ऐसे पापरूपी बडे बनको भस्म करनेमें यह आराधना अनि समान हैं. मोहरूपी अंधकारको नष्ट करनेके लिये यह सूर्य के तुल्य है. संपूर्ण इच्छित वस्तु देने में यह काम धेनूकी बराबरी करती है. ऐसी यह आराधना निर्वाध अनंत ज्ञान जिसमें भरा हुआ है ऐसा सुख तुम लोगोंको प्रदान करे. श्वभूमिज्वलद्वद्वेऽविच्छिन्नजलोङ्गतिः ॥ अयं नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ॥ २२५६ ।। १७ नरकभूमिमें प्रज्वलित अग्रिको शांत करनेके लिये यह आराधना अविच्छिन्न मेघाक समान है. ऐसी रत्नत्रय से निर्मलरूप आराधना हमको प्राप्त हो. यैषा कुदालिका शाता तिर्यग्दुःखांकुरोद्धृतौ ॥ अग्र नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ॥ २२५७ ॥ १८ तिर्यग्गतिके दुःखरूपी तृणांकुरको उरवाडने के लिये जो कुद्दालकतुल्य है. ऐसी यह आराधना हमारा रक्षण करें. म तितलाभाय येषा कल्पद्रुमायते ॥ अयं नः शरणं सांस्तु रत्नत्रय विशुद्विता ॥ २२५८ ॥ १९ मनुष्योंको चिंतित पदार्थ देनेके लिये जो कल्पवृक्षके तुल्य मानी गई है ऐसी रत्नत्रय से विशुद्ध हुई यह आराधना हमारा रक्षण करें. आश्वासः ८ : १८६८

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