Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 1886
________________ मूलाराधना आश्वासः मुक्तिश्रीललनानिवासकमलं धत्ते गुणनिर्मितम् ॥ सा मे हृत्सरसि स्फुट विकसतादाराधनापशिनी ।। २२७९ ।। ३९ शुद्धयष्टकोके साथ रहनवाला सम्यग्दर्शन ही जिसके दल हैं, अर्थात निकितादिक आठ अंग ही इस कमलके दल है. ज्ञानही जिसकी उज्ज्वल कर्णिका है, चारित्रही जिसका उज्ज्वल और दीर्घनाल-दंड है, निर्मल शील समुदायही जिसका केसर है.जो मुक्तिरूपी लक्ष्मीका निवास स्थान है ऐसे कमलको धारण करने वाली, गुणांसे उत्पन्न हुई ऐसी यहा आराधनारूप कमालनी मेरे हृदयरूप सरोवरमें हमेशा विकास युक्त रहे. इसपकार श्री अमितगत्याचार्यविरचित आराधनास्तव समाप्त हुआ नक्षत्रगुणान्वर्णयिष्यामि । १ तं जधा। अस्सिणीणक्यत्ते जइ संथारं गिण्हदि तो सादिणक्खत्ते रत्ते कालं करेदि ।। २ भरणिणखत्ते जदि संथारं गेण्हदि तो रेवविणकावत्ते पन्धुसे मरदि। ३ किंतिगणवत्त जदि संधारं गण्हदि उत्तरफागुणिणक्खत्ते मझण्हे मरह।। .४ रोहिणीणखत्ते जदि संथारं गेहदि सो सवणणक्खत्ते अद्भरते मरदि। ५ मियसिरणक्खत्ते जदि संथारं गेहदि तो पुवफगुणणक्खने मरवि । ६ अदाणकरखते जदि संधारं गेण्हदि तो उत्तरदियसे मरदि । जदि ण मरेदि तवा तरिम पुरोगदे णक्वत्त मरिस्सदि ॥ ७ पुनर्वसुणवत्ते जदि संधारं गेण्हदि तदा अस्सणिणक्खत्ते अवरण्हे भरदि ।। ८ पुस्सणक्खत्ते जदि संधार गेण्हदि तो मियसिरणवत्ते भरदि। १ असलिसणखते जदि संधारं गण्हदि सो चिनणवत्ते मरवि ॥ १० मघणक्खन जदि संधारं गेण्हदि तो तहिवसे मरदि यदि ण मरदि तदा तलि पुरोगदे णखत्ते मरदि। ११ पुष्वफरगुणिणक्वते यदि तो धणियाणक्खत्ते दिवसे मरवि ॥ ARREARRARAMAR

Loading...

Page Navigation
1 ... 1884 1885 1886 1887 1888 1889 1890