Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1885
________________ लाराधना आश्वास ५८७४ या दुर्मोहतमोघटाविघटने चंडाशुरोचीयते ॥ सावः पापमलानि तु मचिरा रत्नपाराधना ।। २३७६ ।। २६ जो संसाररूपी तीव विषका हरण करने में उत्तम विद्या के समान है, जो कमरूपी चल्लीका वन जलानेमें दावाग्नीके समान है, जो मिथ्यामोहांधकार को नष्ट करने में सूर्यकान्ती के समान आचरण करती है ऐसी यह मनोहर रत्नत्रयाराधना हमारे पापमलोंका नाश फरे.. धाराममहातरोः फलवती या पुण्य सन्मंजरी ।। मुक्तिश्रीललनाभितारणपद्धष्टाक्षरा शंफली ।। स्वर्गाग्रप्रविभासिसौधशिखरारोहकनिःश्रेणिका ॥ सावः पातु पवित्रमूतिरमत्ता रत्नत्रयाराधना ।। ।। २२.७७ ।। ३७ यह आराधना धर्मरूपी बगीच के बडे वृक्षको फलयु उत्तम मंजरी है. यह आराधना मुक्तिरूपी सुंदरी को अभिसरण करने लिये प्रवृत्त करनेवाली स्पष्ट और मधुर बोलनेवाली दासी है. स्वर्गक अग्रभागपर शोभनेवाले मोक्षरूप प्रासादके उपरके भागपर आरोहण करनेके लिये यह आराधना नसैनीके समान है. ऐसी यह पवित्र और निर्दोष आराधना तुझारा संरक्षण करे. या सदृष्टिरुचिप्रभास्वरसनुः संज्ञाननत्रोज्ज्वला ।। सच्चारित्रविभूपणा शुचितपशीलौघमाल्यांवरा ।। मुक्तिश्रीवरकामिनीप्रियसखी पुष्पेषुविद्वेषिणी॥ सा धीरैरभिवंदिता मम हृदि स्तानित्यमाराधना ॥ २२७८ ।। ३८ यह आराधना सम्यग्दर्शनरूपी कांतिसे सुंदर दीखती है. पवित्र तप और शीलसमुदायरूपी पुष्पमाला और वस्त्र धारण करनवाली है. मुक्तिलक्ष्मीरूपी सुंदर स्त्री की यह प्रियसखी है. यह मदनका द्वेष करती है. विद्वान पुरुषोने जिसको वंदन किया ऐसी यह आसपना मेरे हृदय में नित्य वसती करे या शुद्धयष्टकयुक्तदर्शनदलं ज्ञानोल्लसत्कर्णिकम । चारियोज्ज्वलदीर्घनालममलं शीलोल्लसत्केसरम् ।। AMERA

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