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मूलाराघना
१८७२
श्रीमद्भुसिसमुज्ज्वलैर्विरचिता दोषोग्ररोगापहा ॥
सा वस्तिष्ठतु चक्षसीह सुतरामाराधनाकठिका ।। २२७० ।।
३० यह आराधना कंठके मुक्ताहार तुल्य है. इसमें पोडशकारण भावनारूप मोती पिरोये गये हैं. बीच बीच दशलक्षण रूप नायकरत्नों की रचना की गयी है. उज्ज्वल सम्यग्ज्ञानरूपी मृतके द्वारा यह आराधनारूप मुक्ताहार रचा गया है. चारित्र और गुप्ति एतत्स्वरूपी मौक्तिक भी इसमें हैं. ऐसी यह आराधना कंठी आप लोगों के बक्षस्थलपर हमेशा रहे.
या निःशेषपरिग्रहेमद
दुर्वारसिंहायते ॥ या कुज्ञानत मोघटाघटने चंडांशुरोचीयते ॥
या चिंतामणिरेव चिंतितः संयोजयंती जनान् ॥
सा चः श्रीवसुनदियोगि महिला पायान्दारावना ।। २२७१ ।।
३१ यह आराधना सर्व परिग्रहरूपी हाथिका बात करनेके कार्य में सिंह समान है. अज्ञानांधकार का समूह नष्ट करनेके लिये सूर्यकांतिके समान है. चिन्तितफलोंके देनेके लिये यह सब जनों को चिन्तामणि रत्नतुल्य है. श्रीसुनंदि आचार्य से पूजित ऐसी यह आराधना आप लोगोंका नित्य रक्षण करे.
या संसारमहोदधेः प्रत्तरणी नौरेव भन्यात्मनाम् ॥
या दुःखज्वलनीष निर्वापणी स्वधुनी ! या चिंतामणिरय नितिफलैः संयोजयन्ती जनान् ॥
सा निःश्रेयसहेतुरस्तु भवतामारधना देवना ।। २२७९ ।।
३२ भव्य जीवोंको संसारसमुद्र नरनेके लिये यह आराधना नौका के समान है दुःखरूपी अग्नीसे जलनेवाले लोगों को शांतिसुख देनेवाली स्वर्गगाके समान है, जो चिंतित इष्टफलीसे लोकोंको संयुक्त कर देती है वह आसधना तुम लोगोंको मोक्ष देने में हेतु बने.
या पुस्रमूर्तिरेकपदधी स्वर्गाला रोहिणाम् || या मार्गश्रवर्तिनीति विदिशा निर्धूतनानारजाः ॥
आश्वास
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