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साराधना
भावासा
१८७०
२४ सर्व जिनेश्वर रूपी हिमाचलसे इस आराधनारूपी गंगा नदीकी उत्पचि हुई है. यह शीलरूपी प्रवाइसे युक्त है. सर्व ऋद्धि के धारक गणधरों से यह मानी गई है. यह निर्मल है. दुर्गार संसार के असुख से पीडित पुरुपोंको आनंदित करनेवाली, ऐसी यह आराधना गंगा पापनाश करनेके लिए कारण होवे. और हमारा हमेशा कल्याण करें
या सज्ज्ञानसमृद्धिनालकलिता सम्यक्त्वसस्कर्णिका ।। या चारित्रपलाशसंचयाचताधा तपोभासुरा॥ या भव्योत्तमषट्पदेः पारवता नै संग्यपद्माकुला ||
सा वोऽस्याद्भचतापमुज्ज्वलगुणराराधना पद्मिनी ॥ २२९५ ॥ २५ सम्यग्ज्ञानकी उन्नति होना ही जिसका नालंदंड है. सम्यक्त्वरूपी कार्णिका से जो युक्त है, तेरह प्रकारका चारित्र ही जिसके पत्र है. दो प्रकार के तप से जो प्रफुल्लित है, जो भव्य पुरुषरूपी उसम भ्रमरोंसे बेष्टित हुई है, और निष्परिग्रहता रूप कमलसे जो सुन्दर दीखती है ऐसी यह आराधनारूप पामिनी-कमलिनी अपने उज्ज्वल गुणों से आराधक ऐसे तुम लोगों का भवसंताप दूर करे..
या सर्यास्रवरोधिनी कलिमलं दूरं निरस्यांगजम् ।। सैद्धं चारुप नयद्गुगुणवतो भव्यात्मनो वांछितम् ।। चक्रेशादिसुख सुरैरभिनुतं संयोज्य संन्पस्यतां ॥
सा वः स्पान्मुनिहंससेचिनरसा देवापगाराधना ॥२२६६.॥ २६ यह आराधनारूप गंगा नदी संपूर्ण आस्रवोंको रोकती है, शरीर में उत्पन हुए रागद्वेषादिक मल नष्ट कर गुणवान् भव्य जीवको इष्ट सुन्दर ऐसा सिद्धपद अर्पण करती है. सोखना मरणका जिन्होंने आश्रय लिया.है ऐसे सत्पुरुषोंको देवोके द्वारा चन्दनीय ऐसा चक्रवादिकोका सुख देती है. मुनिहंस जिसके रसका पान करते हैं ऐसी आराधना रूप गंगा आपको प्राप्त हो.
या शीलोज्ज्वलपुष्पगंधसभमा सभ्यानसत्पलया ॥ . भास्वदर्शनसंभवा वरतप-पत्रोचयनचिता ।।
रूप गंगा आपावलपुष्पगंधमुमोचपेनाधित
AMARRERARAMATARAKAR