Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1878
________________ मूलाराधना आबासा १८६७ AARADADIMANARTHABARAMATAARAMETAARATI या कामक्रोधलोभप्रभृतिषहविधग्राहनकायकीर्णा ।। संसारापारासिंधोभवमरणजरावर्तगर्तादुपेत्य ॥ गच्छत्त्युत्तीर्य सिदि सपदि भवभृतः शाश्वतानंतसोख्यम् ॥ भव्पराराधनानौगुंणगणकलिता नित्यमारुता सा ।। २२५२ ।। - १३ यह संसारसमुद्र काम, क्रोध, लोभ, वगैरह नाना प्रकारके प्राह और नकोसे मरा हुआ है. इसमें जन्म, मरण और जरारूपी भोवरें है ऐसे संसार समुद्र में पड़ा हुआ प्राणी सगुणास बनी हुई आराधनाका आश्रय लेकर उससे उचीर्ण होता है तथा नित्य अनंत सुख देनेवाले मोक्षको प्राप्त कर लेता है. या मैत्रीख्यातिकांतिद्युतिमतिसुगतिश्रीविनीस्याविकांताम् ।। संयोज्योपार्जनीयामसमितमानिधिर्मक्तिकांता पुनफि॥ मुक्ताहाराभिरामा मम मदशमनी सम्यगाराधनाली ॥ भूयानेदीयसी सा विमलितमनसां साधयन्तीप्सितानि ॥ १२५३ ॥ १४ आराधनाकी सेवा करनेसे वह सेवकोंको मैत्री, ख्याति, कांति, शोभा, बुद्धि, सुगति, संपत्ति, नम्रता इत्यादि स्त्रियोंके साथ संयुक्त करती है. और अन्तमें अवश्य प्राप्ति करनेके योग्य ऐसी मुक्ति भी देती है. यह आराधना मोतिओंकी मालाके समान सुंदर है. मेरे मदको नष्ट करके निर्मल चित्तवाले पुरुषोंको इष्ट पदार्थ सम र्पण करती हुई मेरे साभिध हमेशा रहनेकी कृपा करें. स्वांतस्था या दुरापा नियमितकरणा सृष्टसर्वोपकारा ।। माता सर्वाश्रमाणां भषमधनपराऽनंगसंगापहारा | सत्या चित्तापहारी चुहिसजननी ध्वस्तयोषाकरश्रीः॥ दद्यादाराधना सा सकलगुणवती नीरजा वः सुखानि ॥ २२५४ ॥ १५ यह आराधना दुर्लभ है. जब प्राणिआंके मन में यह मुकाम करती है तब उसको जितेन्द्रिय ब. नाती है. सर्व प्रकारके उपकार करती है. ब्रह्मचर्यादि चारो आश्रमोंकी यह माता है, संसारका नाश करके, कामविकारको दूर भगाती है. सत्यही इसका स्वरूप होनेसे चिन्मय आत्माके संसारतापको दूर करती है. विवानोंका १८६७ मय

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