________________
मूलाराधना
आभास
१८६०
PROPORNER
होता है. वह केवलज्ञानकी अवस्थाको धारण करता है तब इस आत्मामें संपूर्ण गुणांसे हमेशा परिपूर्ण, और सूक्ष्म व्यंजन पर्याय और स्थल नर नारकादि पर्याय जिसमें उत्पन्न होते हैं ऐसे जीवपद्लादि पद्रव्योंको जाननेका सामर्थ्य उत्पन्न होता है. संपूर्ण भूत भविष्यद्वर्तमानकाल संबंधी पर्यायों सहित जाननेका सामथ्र्य प्राप्त होता है, सिद्धोंमें ऐसा सामर्थ्य प्राप्त दुआ है अतः मैं उनको नमस्कार करता।
२दीपक जैसा सामान्य और विशेष पदार्थों को एकदम और अलगमी प्रगट करता है वैसा केवलज्ञान भी वस्तुके सामान्य और विशेष पर्याय युगपत् और कथंचिद् भिन्नरूप अपने और तमाम पदार्थोको प्रगट करता है. पहायजाम अनंत सुख देनेशला है. इसकी प्राप्ति होनपर संपूर्ण पदार्थ आत्मा जान लेती है तो भी यह उन पदार्थों में आसक्त नहीं होती है और द्वेपी भी नहीं होती है.
यह केवलझान धारावाही ज्ञानके समान होकर मी प्रत्येक क्षणमें नवीन पर्यायाँको धारण करने वाले पदार्थ इसका विषय बनते हैं अतः इसमें प्रामाण्य प्राप्त होता है. अनंत दर्शनके साथ यह केवलज्ञान मुक्तिलक्ष्मी की प्राप्ति कर देता है. हे सिद्ध परमेष्ठिन् ! ये दो गुण आपमें सदाके रहते हैं अतः मैं आपको नमस्कार करता है.
३दर्शन सत्ताको विषय करता है और शान पदार्थ की विशेषताको दिखाता है. ये दर्शन और ज्ञान संपूर्ण जीवोंको नेत्रसमान समझने चाहिये. परंतु दोनोंमें इस प्रकार अंतर है-जो जवि कर्मसहित हैं अर्थात् जो ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मसे सहित है उनको ये नेत्र दर्शन पूर्वक वस्तुका स्वरूप दिखाते हैं. अर्थात छअस्थ जीवोंको प्रथम दर्शनोपयोग होता है अनंतर ज्ञानोपयोग होता है. वह भी संपूर्ण पदार्थो में नहीं होता है. परंतु जिनका ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म नष्ट होगया है उनके ज्ञान दर्शनमें ऐसा सामर्थ्य प्रगट हुआ है कि जिसके सामर्थ्य से वे युगपत्संपूर्ण पदार्थीको देखते हैं और जानते हैं. हे सिद्ध भगवन् ! आप शरीररहित हुए हैं और आपको ऐसे अद्वितीय नेत्र प्राप्त हुए हैं. इसलिए मैं आपको नमस्कार करता है,
। सिद्धपरमेष्ठिओंको अनंत शक्ति नामक आत्मगुण प्रकट होता है. इसके सामर्थ्यमे उनका ज्ञान आत्मतत्व को जानता है. सिद्ध पुरुषोंमें आत्माको नानाप्रकारकी शक्ति अर्थात् गुण प्रगट हुए हैं. ये सर्व गुण आपसमें मिले रहनेपर भी सिद्धों को इनके स्वरूपका स्पष्ट अनुभव आता है. अपने उत्पाद, व्यय, और धीच्यके साथ संसारी जीवोंके समस्त शक्तिरूपमें रहनेवाले गुणोंको भी सिद्धपरमात्मा जानते हैं. उनके जानने में संकर व्यतिकर दोष उत्पन्न नहीं होता है. वे इन गुणोंके कर्ता और भोक्ता है. अतः ऐसे सिद्ध परत्माओंफा मैं मनमें स्मरण करता हूं.