________________
आबासा
मूलाराधना
१८६३
२५० आशाधरजीके पत्नी का नाम सरस्वती था. वाग्देवताम अर्थात सरस्वती में जैसा पंडितजीने अपने को उत्पन्न किया था से सरस्वती नामक अपने पत्नी में उन्होंने छाइट नामका पुत्र उत्पन्न किया. यह पुत्र गुणधान था और इसने अर्जुन नामक मालवदेशके राजाको संतुष्ट किया था.
३-४ बघेरवाल वंश रूपी कमलमें जो ईसके समान है, काव्यामृत रसका पान करने से जिसका शरीर पुष्ट हुआ है, जो नयरूपी आखोंसे युक्त है, सल्लक्षणके सत्पुत्र एसे इस आशाधर कविको हम 'कलिकालिदास इस उपाधिसे भूषित करते हैं. ऐसा कहकर कविके मित्र उदयकीर्ति मुनीन बड़े प्रेमसे जिसका आदर किया है ऐसे आशाधर कवि जगत में हमेशा विजयी होवं. इसी तरह मदनकीर्ति यतश्विरने प्रज्ञापूंज ऐसा बिरुद देकर इनको भूषित किया था.
५ साहिबुद्दीन नामक श्वनराजाने सपादलक्ष नामक देश जब अपने कब्जे में कर लिया तब अपने सदा चारका विनाश होगा इस डरसे विंध्यराजाके गद्यप्रताप से जिसका रक्षण हो रहा था ऐसे मालव देशमें अपने बड़े परिवार के साथ प्रवेश करके धारा नगरी में उन्होंने निवास किया. यहां वादिराज पंडितके शिष्य श्रीधरसेन थे
और उनके शिष्य महावीर थे उनसे इन्होंन जैनेंद्र व्याकरण व जैनन्यायका अध्ययन किया. ( यहां तक यह प्रशस्ति है. अत एव अपूर्ण है. विशेष जिज्ञासुओंको सागार धर्मामृत अनगार धर्मामृत की प्रशस्ति देखलेना चाहिए.
श्रीमदमितगतियतिपतिप्रशस्तिः । श्रीवेवसेनोऽजनि माथुराणां गणी यतीनां विहितप्रमोदः॥ तत्वावमासी निलतप्रदोषः सरोकहाणामिव तिग्मरश्मिः ॥२२४० ॥ धृतजिनसमयोऽजनि महनीयो गुणमणिजलधेस्तदनु यतियः ।। शमयमनिलयोऽपितगतिसूरि प्रदलिनमदनः पदनतसूरिः ।। २२४१ ॥ सर्वशास्त्रजलराशिपारगोनेमिषणमुनिनायकस्ततः ।। सोऽजनिष्ट भुवने समोपहः शीतरश्मिरिच थो जनप्रियः॥ २२४२॥ माघयसेनोजनि मुनिनाथो ध्वंसितमायामदनकवर्थः ॥ तस्य गरिछो गुरुरिय शिष्पस्तत्त्वविचारप्रवणमनीषः ॥ २२४३ ॥
PARARIAAWAJAST:
१८६३