Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1810
________________ मूलाराधना है अर्थात् अपनी शकेि अनुसार जिसने हिंसादिक्ये निानि धारण की है. संपूर्ण गृहस्थके व्रत पालनेवाला अथवा कुछ व्रत पालनेवाला ऐसा जो सम्यग्दृष्टि उसके मरणको जिनागममें बालपंडित मरण कहते हैं. आश्वास पतदेच स्पष्यति ॥ पंच य अणुव्वदाई सत्तयसिक्खाउ देसअदिधम्मो ॥ सव्येण य देसेण य तेण जुदे होदि देसजदी || २०७९ ॥ पंचधाणुव्रतं प्रोक्तं त्रिधा प्रोक्तं गुणत्रतम् ।। शिक्षावतं चतुर्धा च धर्मो देशयतेरयम् ॥ २१५१ ॥ विजयोदया-पंच य अ गुय्ययाई पत्राणुप्रतानि शिक्षाप्रतानि वा सप्त प्रकाराणि देशयतेर्धमः तेन समस्तेन धर्मेण युतः स्वशक्त्या या तदेकदेशेन युतोऽपि वेशयतिरेव द्वादशविधगृहिधर्मपत्यायनपराणि सूत्राण्युत्तराणि प्रसिद्वार्थानि ॥ दर्शकदेशविरतपदार्थ विवरणार्थमाइ मूलारा-सिक्नाओ गुणवतत्रयं, चत्वारि, शिक्षाप्रतानीत्यर्थः । सब्वेण सम्यक्त्वपूर्वकद्वादशवतात्मकेन | देसेण सदर्शनसमावस्यशक्त्युपकल्पितत्रतरूपेण ॥ अर्थ- सम्यक्त्व के साथ पांच अणुव्रत और सात शिक्षाप्रत ये गृहस्थके धर्म हैं. इसलिये इन चारा व्रतोंसे जो युक्त है उसको उस गृहस्थको देशयति कहने हैं. इस संपूर्ण धर्मसे अथवा स्वशक्तिसे उस धर्मके एक देशसे जो युक्त है वे भी गृहस्थ देशयति कहे जाते हैं. पाणवधमुसाबादादत्तादाणपरदारगमणेहिं अपरिमिदिच्छादो वि अ अणुक्याई विरमणाई ॥ २०८० ।। जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडोहि जं च चेरमणं ।। देसावमासियं पि य गुणन्वयाई भवे ताई ॥ २०८१ ॥

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