Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya,
Publisher: ZZZ Unknown
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PHRATASSADARAMADARA
मूलाराधना
आचासा
१८०७
सूक्ष्मसाधारणोशोतम्यागशिप मापान॥
एकाक्षविकलाख्यानां जाति तिर्यग्द्वयं मुनिः ॥ २१६७ ।। विजयोदया-अणियट्टिकरणणाम णवम गुपाठाणमधिगम्म अनिवृत्तिगुणस्थानमुपगम्य पिदाणिदा पयलापयला निमि प्रचलामचलां स्त्यानाद्धं च ।
अनिवृत्तियादरसापरायनपकस्थान प्राप्य क्रमेण क्षपणीयानि कर्माणि गाधाचनुष्टयेन व्याचष्टे
मूलारा-अध अपूर्षकरणानंतरं । सो पृथक्वचितचीचारायशुक्लथ्यानप्रविष्टः । रववेदि वक्ष्यमाणानिद्रा निद्रादीन्सतविंशकर्मविशेषान् । षोडशाटककसंख्याक्रमेण विश्लेषयत्तौति समुदावार्थः । अणियट्टिठाणमुवचित्ताणं अनिवृत्तिकरणप्राप्त्या अनिवृत्तिवादरतापरायझपक गुणस्थानमुसंगम्य । जिहाणिहा भुक्तानपरिणाममदखेदकलमादेविनोदार्थो निद्रास्पदर्शनावरणकर्मविशेषत्रिपाकनिमित्तो जीवस्य दियारमाननो-गरुत्सूक्ष्मायस्थालक्षण: स्वापो निद्रा । निद्राया उपरि उपरि वृत्तिनिद्रानिद्रा । निद्रातिद्रादीनाचरणकमविशेपोदयजन्यश्चेतनस्य दुःखप्रोधस्थापपरिणाम इति यावत् ॥ वक्तं च
गिदा सुश्परिचोदा गिहाणिहा य दुक्खपाडवोहा ॥
पयला होइ टियरस वि पयलापयला य चंकमंतस्स ॥ __ स्थलापयला या क्रियात्मानं प्रचलयति घूर्णयति सा प्रचला प्रयळाक्यदर्शनावरणफर्मविशेषषिपावशस्य जीवस्यासीनस्थापि शोकश्रममदादिममवो ने गात्रविक्रियासूचितः स्वापरिणाम इत्यर्थः । प्रचलेव पुन:पुनरावर्तमाना प्रचलाप्रचला । चंक्रममाणस्थापि आफ्ननः प्रपळाप्रवलाख्यदर्शनाबरण कमेरिकलाविपाकशाजायते । यीणगद्धि स्वप्ने यया वीर्य विशेशविर्भावः सा त्यानगृद्धिदर्शनारणकर्मविशेषः । स्त्याने स्वप्ने गृद्धयति यदुदवादात्मा रौद्रं बहु कर्म करोति । अब निद्रादिशब्दहेतुफळ भावापनभावस्वभावदर्शनावरण कर्मविकल्पाः पुदलजीवविधता गृह्यन्ते ।।
अर्थ-अनिवृत्तिकरण नामक नवमें गुणस्थानको प्राप्त होनेपर मुनिराज निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानमृद्धि इनका नाश करते हैं.
विशेपार्थ-पृथक्त बितर्क विचार नामक ध्यान में प्रवेश करनेपर निद्रा निद्रादिक सदतीस कर्म प्रकतिओंका क्षय करते हैं. उस समय वे अनियुतिकरण गुणस्थानमें रहते है.
निद्रा-भोजन किए हुए अनका मद उत्पन्न होनेसे, तथा खेद, क्लम इनको नष्ट करनेके लिए सो जाना उसको निद्रा कहते हैं. जब निद्रा नामक दर्शनावरण कर्मविशेषका उदय होता है तब जीवके इंद्रिय

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