Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1857
________________ मूलाराधना आशस १८४६ अर्थ-सिद्धसुखके समान अथवा इससे अधिक सुख जगतमें दुसरा नहीं है. अतः सिद्धोंका सुख अनुपम है. छपस्थ जीव अपने छानसे जानने में अथवा उसका परिमाण कहनमें असमर्थ है. अतःवर सिसुख अमेय है. प्रतिपक्षरूप बुःखका इसमें अभाव है अतःवह अक्षय है. रामादिदोषोंसे रहित है अतः यह अमल है. जरावस्थासे रहित होनेसे इसको अजर कहते हैं, रोगरहित होनेसे यह अरुज है. भय रहित होनेसे अभय है. संसारभ्रमणसे मुक्त होनेसे इसको अभय कहते हैं, यह सिद्धमुख फक्त आत्मासेही उत्पन्न होता है इस लिये यह ऐकांतिक असहाय है. इस प्रकार यह सिद्ध सुख अन्यायाध कहा जाता है. विसएहिं से ण कज्जं जं पथि छुदादियाउ बाधाओ ॥ रागादिया य उवमोगहेदुगा णात्य जं तस्स ॥ २१५४ ॥ विजयोबया विसपदि से ण कम्ज शब्दादिभिर्विषयः न कार्य यतः सिद्धस्य न संति क्षुधादिका घाधाः, रागादयश्च विषयोपमोगहेतवो न संति यस्मात्तस्य || प्रतिकायोपभोगहेत्वभावात्सिद्धाममो विषयामर्थित्वगाह मूलारा–पिसपईि अन्नपानादिमिः । उवभोगइदुगा अनुभवकारणानि । रागादिग्रहाविष्टो हि विषयाननुभुक्ते । वेदनाप्रतीकारार्थी वा न च सिद्धस्य तायमप्यस्ति । अर्थ--शब्द, अन्नपानादिक विषयोंसे सिद्धसुख नहीं उत्पन्न होता है. क्यों कि, भूख, प्यास, रागादिक विकार जो कि विपयोपभोगके हेत हैं ये सिद्धोंके नहीं है. एदेण चेव भणिदो भासणचंकमणचिंतणादीणं ॥ चेदाणं सिद्धम्मि अभावो हदसम्वकरणम्मि ॥ २१५५ ।। विजयोदया-पदेण बेव भागिदो पतेन चोक्तः भाषणं चंक्रमण चिंतनादीनामभावः सिझे इतसर्व क्रिये ।। सिद्धस्य सर्वचेष्टोच्छेदमतिदिशति-- मूलारा-हदसव्वकरणमि निवितसर्व क्रिय । सक्रियासाधनातीते पाग १८४६

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