Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1867
________________ लाराधना आश्वासर १८५६ सवारशनामुरदारयतनां संतोषपादांगवाम् ।। दोषीकृतभावनां प्रणिपताम्याराधनामम्बिकाम् ॥ ४ ॥ हीसाटी पिनयोत्तरीयसचिरा वीर्याहसत्कंधुकाम् ॥ श्रयान तोज्ज्वला मुबिमलस्वाध्याय लीलाम्बुजाम् ॥ सम्लेश्याहरिचंद्नद्रषरुचं साम्यावतंसोत्सवाम् ।। वर्षन्ती हदि मे सुधां भगवतीमाराधनां धारये ॥ ५ ॥ चेत:पंचनमस्क्रिया श्रुतिमुलनाविश्य यज्ज॑भसे मव्यानां मरणक्षणे त्रिभुवनश्रीणां तदाप्युल्वणम् ॥ किंचित्कार्मणमन्वयत्पुनरवाप्नम्येन धाम्ना तदा । तात्कानप्यचळ चिनोरि वरदे सा तात्विको पुस्थितिः ॥ ६॥ पद्धत्षेम मसीनसमदमपोशाक्षावभासात्मनः ।। स्वं स्वेन सस्वैन स्वगात्मना विशदविम्मात्रात्मकायात्मने ॥ पश्यन्नात्मनि निस्सरंगमहसि स्वां निश्चयाराधने || मातश्रेदहमुस्किराम्यपुनरावस्या तार्थोऽस्मि तत् ॥ ७ ॥ फि चित्रं जिनप्रिसाधुवपुषा त्वशक्तिसेवापुपाम् ॥ संस्कारेण पविविता: सुरवरदिध्यानयो वह्नयः ।। पूज्यंते द्विजसत्तमर्षिशिवदाधानादिकत्येषु यत् । तत्रिं त्वति यत्पुनंत्यपि गिरि प्रायो जग सद्युतः ।। ८॥ एकानेफभवेद्यमात्परमनैष्क्रम्यानिमयासितः । प्राप्य पंडितपहितैः सकलचिच्छतमवोच्छेदिनी स्वं विदन्भवती यथात्र भवतीमाजन्मयी ज्ञाकुरन्यायेनानुपजद्भिरेभिरसुभिर्मुच्येऽनुचर्या तथा ॥९॥ इत्युदामलसत्परापर कहालीलाविलासाखिलम्लेशा । तत्पदसंपदार्पण परामागधनां संस्तौति यः ॥ स प्राणोपरमोपजाततदुपरकारः शिवाशाधरैराराभ्यक्रमकोऽचलचिदानंदे सदास्ते पदे ।। १०॥ इत्याराधनास्तवः ।। पं. आशापुरजीने मूलाराधना नामकी टीका भगवती आराधनाके उपर लिखी है. उस की निर्विन समाप्ति होनेसे उनको बढा आनंद हुआ. तय भक्तिवश होकर उन्होने परम आराधनीय ऐमे भगवती आराधनाकी स्तुति करनेके दशश्लोक रचे हैं. उसका अनुवाद हम यहाँ पाठकोंके लिये देते है १ सत्पुरुषोंको मान्य ऐसी कालादि लब्धि पाकर भव्य जन संसारसे मययुक्त होते हैं. और सम्यद्गशनाराधनादिचार प्रकारकी आराधनाओंका आराधन करके आपने परिणाम आतशय निर्मल बनाते हैं. ये आराधनायें मोक्षमार्गमें प्रवृत्त होने वाले भव्य लोंगोको कलेवाके समान है. इनकी आराधनासे ही पूर्व कालमें बहुत भव्य लोकोने मुक्ति की प्राप्ति करली है, मुक्तिकी प्राप्ति करते हैं. ब करेंगे. अतः व्यवहाराराधनदेवता-भेद रत्नत्रयरूपी आराधना और अभेद रत्नत्रयरूपी निश्चयाराधना मानो देवता ही है, इस देवताको में मस्तक नमाकर नमस्कार करता हूं. १८५६

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