Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1860
________________ लाराधना आश्वास १८४९ एवं पण्डिदपण्डिदमरणेण करंति सबदुक्खाणं ।। अंत णिरंतराया णिच्वाणमणुत्तरं पत्ता ॥ २१५९ ॥ भवति पंडितपंडितमृत्युना सपदि सिद्धिवधर्वशवर्तिनी ॥ विमलसौख्यविधानपटीयसी सुभगतेय गुणेन निरेनसा ॥ २२३४ ।। इति पंडितपंडितम् ॥ विजयोदयापर्ष पण्डितपण्डितगरणेण एषमुक्तेन क्रमेण पण्डितपण्डित मरगण सर्वतुःखानामतं कुर्वति । निरंतराया निर्मिना निर्वाणमनुतरं प्राप्ताश्च । एतेम पण्डितपंडित मरणव्याख्यातं ॥ पंक्तिपंडितमरणं गर्द। प्रकृतमुपसंहरति मूलारा-अंतं विनाशं । णिरंतराया निर्विघ्नाः । संतो भब्या: । पत्ता प्राप्तुमारब्धाः । जीवन्मुक्ता इत्यर्थः। इति पंडितपंडिसमरणयाण्यानं समाप्तम ॥ अर्थ--इस प्रकार इस पंडितपंडित मरणके द्वारा महापुरुष केवल ज्ञानी अपने सर्व दुःखोंका अन्त करते हैं. जिससे उनको निर्विघ्न और सबसे उत्कृष्ट ऐसा मोक्ष प्राप्त होता है, इस प्रकार पंडितपंडितमरण का वर्णन समाप्त हुआ. एवं आराधित्ता उक्करसाराहणं चदुक्खधं ॥ कम्मरयविप्पमुक्का तेणेव भवेण सिझंति ॥ २१६० ॥ विजयोदया-एवं आराधित्ता पवमाराम्य । जनस्साराधणं उत्कृष्टाराधनां । पदुक्खधं समीचीनदर्शनशान चरतपोभिधानचतुष्कत्यं । कम्मरजविण्यमुस्का कर्मरजोविनमुक्तास्तेनैध मवेन सिति ॥ अथ चतुर्विधाराधनाया उस्कृष्टमध्यमजयन्यभावनाप्राप्यानाः सिद्धर्भवावधारणाय गाधात्रयेण चूलिकामाहमूलारा--चदुखधं चतुर्विधाम् ।। अर्थ-- जिसके चार भेद हैं ऐसी उत्कृष्टाराधनाकी अर्थात् सम्यग्दर्शन:ज्ञान, चारित्र और तप इनकी आराधना करके जो महापुरुष कमरजसे मुक्त हुये हैं अर्थात् जिन्होंने घातिकमौका नाश किया है वे उसी भक्मे मुक्त होते हैं. १८१९

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