________________
नलाराधना
अर्थ---इस अनिचिकरण गुणस्थानमें जैसे निद्रानिद्रा, प्रचला मचला, और स्त्यानगृद्धि इनका नाश |
16 आवास होता है. बैंस नरकगत्यानुपूर्वी, नरकगति, स्थावर, मूक्ष्म, साधारण, आतष, उद्योत, नियंग्गत्यानुपूर्वी इन कर्मोका भी नाश होता है.
जिसके उदयसे आत्मा भवानरको माग होता है उस वर्गको गतिकर्म कहत है. आत्माको नरकावस्थाकी प्राप्ति जिम कर्म के उदयसे होती है उस कर्म को नरकगति नामकम कहते हैं. पूर्व शरोराकार का नाश जिस कम के उदय से नहीं होता है उस कर्म को आनुपूर्वी कर्म कहते हैं. पूर्वशरीरका नाश न कर जो कर्म जीव के साथ नरक तक जाना है. उसको नरकगत्यानुपूर्वी कर्म कहते हैं. जो जीवको एकेंद्रिय प्राणिमें उत्पन्न करता है ऐसे कर्म को एकेन्द्रिय कहते हैं. दूसरों को जिससे बाधा नहीं होती है ऐसे सूक्ष्म शरीरको निर्माण करनेवाले कर्म को सूक्ष्म नामकर्म कहते हैं. जो शरीर बहु आत्माओं को उपभोग्य बनता है अर्थात् जिसमें अनंत जीव रहने हैं ऐसा जो निगोदशरीर उसको साधारण शरीर कहते हैं. एसा शरीर जिससे अनता है उस को साधारण नाम कर्म कहते है. जिसके उदय से संताप उत्पन्न होता है ऐसे कर्म को आतपनाम कर्म कहते हैं. इस कर्मका उदय सूर्य के चिंबाम रहता है. उद्योत को निमित्त जो कर्म है उसको उद्योतनाम कर्म कहते है. इस कर्मका उदय चंद्र विच, खद्योत-जुगनु इत्यादिकों में पाया जाता है. नियमति प्रायोग्यानुपुर्व्य-जिमके उदयसे जीव के पूर्व शरीराकारका नाश नहीं होता है तथा जो जीवको तिथंच गतितक ले जाता है उसको तिर्यग्गति आनुपूर्वी कहते हैं.
-
इगविगतिगचदुरिंदियणामाई तब तिरिक्खगदिणाम ॥ खवयित्ता मझिल्ले स्ववेदि सो अबि कसाए ॥ २०९६ ॥ कषायान्मध्यमानष्टी पंढथेदं निकृन्तति ।।
नषिवं क्रमतः षटुं हास्यादीनां ततःपरम् ॥ २१६० ।। विजयोदया-इगविग एकपित्रिचतुरिट्रियजातीः, तिर्यग्मति, अप्रत्याख्यानचतुष्क, प्रत्याख्यानचतुष्कं च अपयति ।
मूलारा-पारितियवादियणामाओ एकेन्द्रियादिजातीश्ववस इत्यर्थः । नरकादितिवन्यभिचारिणा सार