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मूलाराधना
आश्वासा
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लेझ्याशरीरयोगाभ्यां सूक्ष्माभ्यां कर्मबंधकः ॥
शुक्लं सूक्ष्मक्रियं ध्यान कर्तुमारभते जिनः ।। २१५३ ।। विजयोदया- सूश्मलश्यया सूक्ष्म क्रियाया बंधकस्तदासौ सूक्ष्मकिय ध्यान ध्याति ॥
सूक्ष्मकाययोगस्य करणीयद्वयमयधारयति
मूलारा--लेस्साए उत्कृष्टशुक्लले इग्रया । सुहमकिरिचधयो सूक्ष्मकाययोगेन सातवेदनीवस्य बंधकः ।। ताई नदा । सुहमकिरियं सूक्ष्मक्रिय नाम परमशुक्लं ।।
अर्थ-उत्कृष्ट शुक्ललेश्याके द्वारा धमकाययोमस सातावदनीयकर्मका बंध करनेवाले वे जिनभगवान सूक्ष्मक्रिय' नामक तीसरे शुक्लध्यानका आश्रय करते हैं. सूक्ष्मकाययोग होनेसे उनको सूक्ष्मकिय शुक्लध्यानकी प्राप्ति होती है.
सुहमकिरिएण झाणेण णिरुद्धे सुहुमकाययोगे वि ॥ सेलेसी होदि तदो अबंधगो णिच्चलपदेसो ॥ २१२० ॥ सुक्ष्मक्रियण रुद्वोऽसौ ध्यानेन सूक्ष्मविग्रहः ॥
स्थिरीभूतप्रवेशोऽस्ति कर्मबंधविवर्जितः ॥ २१९४ ॥ बिजयोदया-मुहमकिरियेण तेन ध्यानेन निरुद्धे सूक्ष्मकाययोगे निबलमदेशोऽधको भवति । बंघनिमिस्तानामभायात् ॥
तबयानफल प्राप्त्यानंतरभाषिनी सांसिद्धिकीमवस्था पुरुषस्योपदिशतिमूलारा-तपो अलेश्यात् । अधओ समस्तधनिमिसानामभाषात् ।।
अर्थ-- सूक्ष्माक्रिय शुक्लध्यानके द्वारा वे सश्मकाय योगका निरोध करते हैं. तब आत्माके प्रदेश निश्चल होते हैं और उनको अब साता बेदनीय कर्मका भी पंध होता नहीं है. क्योंकि बंधके कारणही उस समय नष्ट हो गये हैं. अर्थात अंधका कारण योग भी उस समय नष्ट होता हैं.
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