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मूलाराधना
आश्वास
१८४०
अर्थ-सिद्ध परमेष्ठी त्रैलोक्यके मस्तकपर आरूढ हुए हैं. ये अहाँसेही संपूर्ण द्रव्य और उनके पर्यायोंसे भरे हुए सम्पूर्ण जगत् को तीनों काल में जानते हैं और देखते हैं. तो भी ये मोहरहित ही रहते हैं.
भाव सगावतपत्थे सुरो जुग जहा पयासह ॥ सब्ब बि तथा जुगवं केवलणाणं पयासेदि ॥ २१४२ ॥ युगपत्वलालोको लोकं भासयतेऽखिलम् ।।
घनावरणनिर्मक्तः स्वगोचरमिवांशुमान् ॥ १० ॥ विजवोदया-भाव सगत्रिसयथे आमगोचरस्थान भायान् सूर्यों युगगाथा प्रकाशपति तथा सर्वमपि ज्ञेयं युगपत्केवलशान प्रकाशयति ।
केवलज्ञानस्य युगपदशेपार्थप्रकागत्वं रवान्तेन स्पष्टयति-- मुलारा-भाचे पदार्थान् । सगविलगत्ये आत्मनोवरस्थान ।।
अर्थ-जैसे सूर्य अपने प्रकाशम जितने पदार्थ समाविष्ट होने हैं उन सबको युगपत्प्रकाशित करता है || वैसे सिद्ध परमेष्ठोका कंवलज्ञान संपूर्ण ज्ञयों को-पदार्थाको युगपत् जानता है,
गदरागदोसमोहो विभवो विमओ णिरुस्सओ विरओ। बुधजणपरिगीदगुणो णमंसणिज्जो तिलोगरस ।। २१४३ ।। रागद्वेषमदकोचलोभमोहचिवर्जिताः ॥
ते नमस्यात्रिलोकस्य धुन्वते कल्मषं स्मृताः ।। २२२३ ।। घिजयोदया-दरागदोसमोहो दूरीतरागोपमोहर, विभओ विगतमयः विमो घिमतमदः, कचिदप्यनुत्सुको, निरस्तकमरजःपटला, युधजनपरिगीतगुणः विश्एप्रयेण नमस्करणीयः॥
मुक्तात्मनः सकलविकारनिराकाराधिगम्य मात्यंतिकमन यलम्यं परमस्त्रापमा वेदयतिमूलारा-णिरुस्सुगो फचिदप्यनुत्सुकः । अर्थ-जिन्होंने रागद्वेष और मोह आत्मारो दूर किये हैं जो निर्भयः मदरहित और उत्कंठारहित हैं.
ALLin
१८४०