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STATI
मुलाराधना
भाश्वासः
श्येनेकीकृतोऽयमा जातिः । तत्कारणं जातिनामकर्म तवैकेन्द्रियादिजाति विकल्पापंचधा । यदुदयादात्म। एक द्रिय इति शब्द्यते नंदकेन्द्रियजानिनाम । एवं दोपेवपि योज्यम् । खवयित्ता निद्रानिद्रादिका यथोक्ताः पोडश कर्मप्रकृतीयुगपद्विश्लेष्य । अट्टवि ईपत्पत्याख्यानमत्याख्यान देशर्सयममावृश्यन्ति निरुन्धन्तीत्यप्रत्याख्यानापरणाः क्रोधमानमाया लोभाः । अल्पस्यापि देशसंयमस्य शाकि योदयेन हतारः । प्रत्याख्यानं सकलसंयम आवृण्वन्तीति प्रत्यारूपानावरणाः कोपादयः करनसंग्रमाक्लिरियाति विराकाः । तानष्टापि मध्यमकपायाभपयतीति संबंधः ।
अर्थ--इस बी गुणस्थानों में एकेन्द्रिय जाति, द्वींद्रियजाति, त्रीन्द्रिपजाति, चतुरिद्रिय जाति, तिर्यग्गति नाम कर्म, अप्रत्याख्यान ऋांध, मान; माया, लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया लोग इलेवनीका क्षय होता है.
एकद्रियादि चार जातिकर्मीका इस गुणस्थान में क्षय होता है. नरकादि गतिओंमें अविरुद्ध ऐसे सादृश्यसे एक रूप दिखानेवाला जो पदार्थका धर्म उसका जाति कहते है. इसीको सामान्य भी कहते है. यह सामान्यावस्था जिससे उत्पन्न होती है ऐसे कर्मको जाति नामकर्म कहते हैं. उसके एकेंद्रिय जाति वगैरह पांच भेद है. जिसके उदयसे आस्मा एकेंद्रिय माना जाता हैं ऐसे फर्मको एकेंद्रिय जातिकर्म कहते हैं, इसी प्रकार हीन्द्रियादि जातिनामकर्मका स्वरूप जानना चाहिए.
निद्रा निद्रादिक सोलहप्रकृत्तिओंका इस मुणस्थान में युगपत् नाश होता है. जो देशसंयमको होने नहीं देते हैं ऐसे कपायोंको अप्रत्याख्यानावरण कहते हैं. इसके प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया और लोभ ऐसे चार भंद हैं. इनका जर उदय होता है तब जीवकी देशसंयम धारण करनेकी शक्ति नष्ट होती है. जो प्रत्याख्यानको अर्थात् सकल मयमको नष्ट करते हैं उनके प्रत्याख्यान क्रोध. मान माया लोम एने नाम हैं. इनमें सकल संयमकामहातका घात करनका सामथ्य हैं. इन आठ मध्यम कषायोंका इस गुण स्थानमें नाश होता है.
RAMAKAuran
तत्तो णपुंसगित्थीवेदं हासादिछक्कवेदं । कोधं माणं मायं लोभं च खवेदि सो कमसो । २०९७ ॥ पुवेदं क्रमतच्छित्वा शुक्लध्यानमहासिना । क्रोधं संज्वलनं मानं मायां संज्वलनाभिधाम् ॥ २१७० 11
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