Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 1809
________________ मूलाराधना १७९८ किया जानेपर वृषभसेन नामक पुरुषने श्वासरोध करके आराधना की सिद्धि की है. अहिभारकनामक बुद्धधर्मका उपासक पुरुष था उसने सुनेका वेष धारण किया था, उसने स्रावस्ती नगरीके जयसेन राजा को मार दिया. उस समय अपने ऊपर राजाको मारने का अपवाद आयेगा इस हेतुसे वृषभसेन नामक आचार्यने पत्रके द्वारा अपना घातकर आराधनाकी सिद्धि की है. शकटाल नामक मुनिने समीप दीक्षा धारण की थी इस शकटाल मुनने वररुचिके कारण शस्त्रसे अपना नामक धर्माचार्यके आराधनाओंकी सिद्धि की है. महापद्म घात कर इस प्रकार पंडित मरणका विकल्पोंके साथ आचार्यने सविस्तर वर्णन किया है, अब यहांसे बालपंडित मरणका संक्षेप में वर्णन करते हैं. दे सेकसविरदो सम्मादिट्ठी मरिज्ज जो जीवो || तं होदि बालपण्डमरणं जिणसासणे दिडं || २०७८ ॥ संयतासंयतो जीवः सम्यग्दर्शनभूषितः ॥ यत्तस्य मरणं प्रोक्तं श्रुत र्याल पंडितम् ॥ २१५० ॥ विजयोदया- सिक्कदेव विरदो सर्व्वासिंयमप्रत्याख्यानस्थालमर्थः प्राणातिपातादिपचकादेशविरत इत्युच्यते । एकदेशवितो नाम देशविरमणेपि एकदेशाव्यावृत्तः हिंसाद्येकदेशाद्विरतः स्थूलभूत म्रियते तस्य तद्वालपण्डित मरणं ॥ सम्यग्दृष्टियों अथातो यापंडितमरणं गाथादशकेन व्याचिख्यासुरादौ स्वामिनिर्देशमुखेन तलक्षयति मूलारा---- देखेकदेसविरो] स्थूलहिंसादिपंचकान्मनोवाक्काय कृतादिना व्यावृत्तो देशविरत इत्युच्यते । एकदेशचिरतस्तु देशत्रिरमणेऽपि एकदेशाद्वत्यावृत्तः । स्वशक्त्यनुसारेण कृत हिंसादिनिवृत्तिरित्यर्थः । एतेन सकलेन विकलेन च सागारधर्मेण युक्तः श्रावको निर्दिष्टः । सं तस्य ॥ अर्थ-स्थूलहिंसादि पाप से मन, वचन, शरीर, कृत, कारित और अनुमोदन इनके द्वारा जो विरक्त हुआ हैं उसको देशविरत कहते हैं. और एक देशविरत उसको कहते हैं कि जो एक देशवितिके भी एक देशसे विरक्त आश्वास ८ १७९८

Loading...

Page Navigation
1 ... 1807 1808 1809 1810 1811 1812 1813 1814 1815 1816 1817 1818 1819 1820 1821 1822 1823 1824 1825 1826 1827 1828 1829 1830 1831 1832 1833 1834 1835 1836 1837 1838 1839 1840 1841 1842 1843 1844 1845 1846 1847 1848 1849 1850 1851 1852 1853 1854 1855 1856 1857 1858 1859 1860 1861 1862 1863 1864 1865 1866 1867 1868 1869 1870 1871 1872 1873 1874 1875 1876 1877 1878 1879 1880 1881 1882 1883 1884 1885 1886 1887 1888 1889 1890