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मूलाराधना
आश्वासः
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अर्थ-शुक्ल लेश्याके मध्यम और जघन्य अंशसे तथा पञ्चलेश्याके अंशोंसे जो आराधक मरणको प्राप्त करते हैं वे वे मध्यम आराधक माने जाते हैं.
तेजाए लेस्साए ये अंसा तेसु जो परिणमित्ता। कालं करइ तस्स ह जहणियाराधणा भणदि ।। १९२१ ॥ लेजोलेश्यामधिष्ठाय आपको यो विपद्यते ॥
जघन्याराधना तस्य वर्णिता पूर्वसूरिभिः ।। २००१॥ विजयोदया-तजाप लेस्साप तेजोलश्याया ये अंशास्तेधु परिणतो यदि कालं कुर्यात् तस्य जघन्याराधना भवति॥ मृलारा- स्पष्टम् ॥ अर्थ-पीत लेण्याके जो अंश है उनसे परिणत होकर जो मरणवश होते हैंधे जघम्याराषक माने
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जाते हैं.
जो जाए परिणिमित्ता लेस्साए संजुदो कुणइ कालं ॥ तल्लसो उववज्जइ तल्लेसे चेव सो सग्गे ॥ १९२२ ॥ प्रतिपद्य तपोवाही यो यां लेश्यां विपद्यते ।।
तम्लेश्ये जायते स्वर्गे तल्लेश्यः स सरोत्तमः।। २००२ ।। विजयोत्या--जो जाए यो यया लेश्यया परिणतः कालं करोति, समलेश्य परोपजायते, तल्लेश्यासमम्बिते स्वर्गे ॥
लेश्याविशेषवशेन स्वर्गविशेषोपपादमाहमूलारा- तल्लेस्सा इत्यादि । यत्र यत्र देवलोके सा सा लेश्या तम्र तत्रोत्पद्यते इत्यर्थः ।।
अर्थ-जो जीव जिस लेश्यासे परिणत होकर मरणको माप्त होता है वह उत्तर भवमें उसही लेश्याका धारक होकर स्वर्ग में उत्पन्न होता है. -
अध तेउपउमसुक्कं अदिच्छिदो णाणदसणसमग्गो ॥ आउक्खया दु सुद्धो गच्छदि सुद्धिं चुयकिलेसो ।। १९२३ ।।
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