________________
मूलाराधना
आश्वासा
१७४१
विजयोदया-चाले बुट्टे वालवृद्धान, शिक्षकान, तपस्विनः, भीरून्, व्याधितान्, दुःखितानाचारध अपाकृत्य धीरा मिनिद्रा जागरणं कुर्बति ।
भूतभिक्षुसमीपे जागरणादिकारणानि निर्दिशतिमूलारा-गिलाणएं व्याधितान् । विकिंचिय मुक्त्वा
अर्थ-बालमुनि, नद्धमुनि, शिक्षकमुनि, तपस्वी मुनि भययुक्त मुनि, रोगीमुनि, दुःखपीडित मुनि और आचार्य इनको बचकर धीर, निद्राको जिन्होने जीता है ऐसे मुनिओको जागरण करना चाहिये. के बनतीत्याच
गीदत्था कदकज्जा महाबलपरकमा महासत्ता ॥ बंधंति य छिदंति य करचरणगुष्ठयपदेसे ॥ १९७६ ।। कृतकृत्या गृहीतार्था महायलपराक्रमाः ।।
हस्तांगुष्ठाविदेशेषु पंघं छेदं च कुर्वते ॥ २०५३॥ विजयोवया-गीवस्था गृहीतार्थाः कृतकरणा महायलपराक्रमा महासत्वा यानति छिति च करचरणं अंगुष्ठप्रदेश था ॥
के कुत्र बंधच्छेदौ कुर्वन्तीत्यवाह--- मूलारा-फदकरणा असकृत्कृतक्षपककृत्याः । करेत्यादि हस्त, पादमंगुष्ठप्रदेश वा ॥
अर्थ-जिन्होने पदार्थका सत्य स्वरूप जाना है और क्षपकके कुस्प जिन्होने अनेक बार किये है, | जिनमें महाबल, पराक्रम और धैर्य हैं ऐसे मुनि क्षपकके हाथ और पाय तथा अंगुठा इनका कुछ भाग बांधते है अथवा छेदते है. पचमकरणे को दोप इत्याशंकायां नोपमाच
जदि वा एस ण कीरेज्ज विधी तो तत्थ देवदा कोई ॥ आदाय तं कलेवरमुहिज्ज रमिज्ज बाधेज ॥ १९७७ ॥
१७४१