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मूलाराधना
आश्वासः
मा
निरुद्धं कथितं तस्य रोगातकादिपीडितं ॥
जंबाबलविहनिो यः परसंघगमाक्षमः ॥ २०८६ ॥ विजयोदया-तस्स बिरुद्ध भणिदं तस्य निरुशमुक्तं रोगेण आत फेन था यस्लमभिभूतः शबलपरिहीनो वा परगणगमनासमों यः॥
निरुद्ध गावापंचकेन व्याचले.--- मूलार!—ण समत्थो रोगेणानकेन वा संतताभिभवाजंघाचलपरिहीनतया वा परगणं गतुमशक्त इत्यर्थः ।। निरुद्धभक्त प्रत्याख्यान किसको होता है इस प्रश्नका उत्तर
अर्थ-- छोटे रोग अथवा बडे रोगसे पीडित होनेपर तथा पैरों में चलने का सामर्थ्य जिसको नहीं है, जो परभणमें जाने में असमर्थ हैं वह मुनि निरुद्धअविचारभक्तप्रत्याख्यान करते हैं.
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जावय बलविरियं से सो विहरदि ताव णिप्पडीयारो ॥ पच्छा विहरदि पडिजग्गिज्जतो तेण सगणेण ॥ २०१४ ॥
यावदस्ति बलं वीर्य स्वयं तावत्प्रवर्तते ॥
. क्रियमाणोपकारस्तु तदभावे गणेन सः॥ २०८७ ॥ विजयोदया-जावय बलविरिय यायलयीय चास्ति । से तस्य । सो विहरति स तावद्गुणे प्रवर्तते निष्पतीकारः यदा शक्तिस्तीवन्यूना तदा पश्चाविहरति तेन स्यगणेन क्रियमाणोपकारः॥
निरुद्धस्वामिनः प्रवृत्ती परानपेक्षाव्यपेक्षावसरो निर्दिशति---- मूलारा-पच्छा अतीव शक्तिन्यूमतायां । पडिजगिर्जतो उपक्रियमाणः ।
अर्थ-जबतक देह में बल, वीर्य था तबतक वह गुणोंमें प्रवृत्ति करता है जब शक्ति तीबतासे कम होती जाती है तब स्वगणसे उपकृत होता हुआ अपने रत्नत्रयमे प्रवृत्ति करता है. अर्थात् अत्यंत अशक्त होनपर गणस्थ मुनि उनकी सेवा करते हैं.
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