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मूलाराधना १७९४
विजयोत्रया एवं णिष्पडियारं एवं स्वपरकृतप्रतीकाररहितं प्रायोपगमनं जिना वदति, निश्चयेन तत्प्रायोपगमनमनीहारमचलं स्याच्चलमपि उपसर्गे परकृतचलनमपेक्ष्य ॥ उक्तार्थोपसं महमाइ
मूलारा - नियमा अणीद्दारं निश्वयेनाचलं स्वकृतशरीरचलनाभावात् । सियाय स्यादवि । णीहारमुषस उपसर्गे परत चलनमपेक्ष्य चलमपि भवेदित्यर्थः ।
अर्थ - इस प्रकार स्वयं प्रतिकार किया जाना और अन्यके द्वारा प्रतिकार किया जाना इन दोनों प्रतीकाऐसे रहित इस मरणको प्रायोपगमन नामक मरण कहते हैं. निश्वयसे यह मरण अनीहार अचल है. परन्तु उपसर्ग अपेक्षा इसको चल भी माना जाता है.
उवसग्गेण य साहरिदो सो अण्णत्थ कुणदि जे कालं ॥ तम्हा वृत्तं णीहारमदो अण्णं अणीहारं । २०७० || उपसर्गहतः कालमन्यत्र कुरुते यतः ॥
ततो मतं चलं प्राज्ञैरुपसर्गले स्थिरम् ॥ २१४२ ।।
एतदेव स्पष्टयति-
मूलारा -- अण्णत्थ स्थापान्नस्थानादपरत्र | अ अतः ||
अर्थ - उपसर्ग के वश होने पर स्वस्थानको छोड़कर यदि अन्यस्थानमें मरण हो जाता है तो उसको नीहार प्रायोपगमनमरण कहते हैं. और जो उपसर्ग के अभाव में स्वस्थान में ही हो जाता है उसको अनीहार कहते हैं.
एतदेवोत्तरगाथया स्पष्टयति-
पडिमा पडिवण्णा विह करंति पाओवगमणमप्पेगे ॥ दीह विहरंता इंगिणिमरणं च अप्पेगे || २०७१ ॥ प्रायोपगमनं केचित्कुर्वते प्रतिमास्थिताः || पधाराधन देवीमिंगिनीमरणं परे ।। २१४२ ।। इति प्रायोपगमनम् ।।
आश्वास
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