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मूलाराधना
आश्वासः
इय सण्णिरुद्धमरणं भणियं अणिहारिमं अवीचारं॥ सो चेव जधाजोग्गं पुवुत्तविधी हवदि तरस ॥ २०१५ ॥ सन्निरुद्धमवीचार स्वगणस्थमितरतम्।।
अपरः प्रक्रमः सर्वः पूर्वोक्तोऽत्रापि जायते ॥ २०८८ ॥ विजयोदया-दय सण्णिरुपमरणं भणिदं एवं सनिरुदमरण भणितं, जंधावलपरहीनतया व्याप्यभिभयेन वा स्वस्मिमाणे निरुद्धो या मरणं नियाममा EिET परिचा:मयायायायानोक्तपरित्यागाभावात्, परित्यागहीनं अनियतविहारादिविधिविचारणाभावावधीचारं । आत्मीय एवं गणे आचार्यस्य समीपे प्रययातीचार उक्त्वा निंदामपिरः कृतमतिकमः छत्तप्रायश्रितो याबद्रीर्यमस्ति तायनिष्प्रतीकारो विहरति, यबर हीनसर्वचेएस्तदा परैरनुगृह्यमाणो विहरति ।
मूलारा--सण्णिरुद्धमरणं जघायलंपरिहीनतया। रोगातंकाभिभवेन वा स्वगण सनिरुद्धस्य प्रतिवद्धपरगणगमनासमर्थस्थ गरणं । अनिहारिमं सविचारभक्तप्रत्याख्यानोक्तस्वगणपरित्यागाभावात् । अवीनारं अनियतविहारादिविचारणाविरहात् । सो इत्यादि । स्वगग एव गणिनश्चरणमूले प्रव्रज्यायतिधारमालोक्य निंदागापरस्कृतप्रतिक्रमप्रायश्चित्तो यावदीयमस्ति तावन्निष्पत्तीकारो विहरति । सर्वचेष्टापरिक्षये पुनः परैरनुगृह्यमाण इत्यतोऽन्यो यथोचितो विधिः पूर्वोक्त एवेत्यर्थः ।
____ अर्थ--इस प्रकार सविरुद्ध मरण का स्वरूप कहा है. पैरोंका सामर्थ्य कम होनेसे अथवा रोगपीडित होनेसे अपने गणमें ही जिसको रहना पड़ता है अन्य गणमें जो नहीं जा सकता है ऐसे मुनिको सनिरुद्ध मुनि कहते हैं. ऐसे मुनिके भरणको सनिरुद्ध मरण कहते हैं. सविचारमक्तके प्रत्याख्यानमें स्वगणका परित्याग कर परगणमें जानेका विधि पतलाया है. वह इसमें नहीं है इसलिये इसको ' आणिहारिम कहते हैं. अनियत विहारादि विधि इसमें नहीं है इस लिये इसको अवीचार कहते हैं. यह मुनि स्वगणमें ही रहकर आचार्यके चरणमूलमें दीक्षासे आजतक हुए अपराधों की आलोचना करता है. निंदा और गर्दा करता है. प्रतिक्रमण करके प्रायश्चित्त लेकर जबतक सामर्थ्य है तबतक दुसरोंके सहायके विना रत्नत्रयाचरणमें तत्पर रहता है. जब प्रवृत्ति करने में बिल. कुल असमर्थ होता है तब अन्यमुनिओंसे शुश्रूषा साहाय्य लेकर रत्नत्रयमें तत्पर होता है.