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भूलाराधना
आश्वास:
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अप्रकाशस्य कारणान्याह--
मुलारा-चित्तसारं मनोबलं । पच प्रतीत्य । सयण बंधुलोकं । अप्पयासं यदि क्षपकः क्षुदादिपरीपहासहो, पसतिर्वा अविविक्ता,कालो वातिरक्षः, बांधवा वा संन्यासं विनयंति तदा न प्रकाशः कार्योऽस्मिन्नित्यप्रकाशक । निरुद्धम् ।
अर्थ-क्षपकका मनोबल, अर्थात् धैर्य, क्षेत्र, काल, उसके बांधव अथवा अन्य भी कारण का विचार कर क्षपकके निरुद्धावीचारभक्त प्रख्यानको प्रगट करते है अथवा अप्रगट करते हैं. यदि क्षपक क्षुधादि परीपहोंसे याडित होगा, अथवा वसतिका एकान्त स्थानमें न होंगी, यदि काल समय अति रूक्ष होगा, यदि बंधुगण इस परित्याग विधीमें बाधा करनेवाले होंगे तो यह प्रत्याख्यान-मरण प्रकाशित नहीं करना चाहिये. निरुद्धतरगं व्याचरे
.. बालग्गिवग्घमहिर गयरिंछ पडिभीय तेक मेछाह ॥
मुच्छाविसूनियादीहिं होज सज्जो हु वावती ॥ २०१८ । जलानलविषव्यालसनिपातविसूचिकाः॥
हरति जीवितं साधो नूसा इव सामसम् ॥ २.९१ ।। विजशेवया-बालमिाघग्घमहिस व्यालेनाग्निना, ज्यानेण, महिषण, गजेन, ऋक्षेण,शत्रुणा,स्तेनेन, म्लेच्छेन, भूईया,विसूचिकादिभिर्या सद्यो व्यापत्तियत् ।।
अथ निमद्धतया वीचारभक्तप्रत्याख्यानं गाथाचतुष्टयेन व्याधिख्यासुरादाबायुरपवर्तिन्याः सद्यो व्यापत्तेः संभवमभिधत्ते
मूलारा-बाल सर्पाः । पडिणीय शत्रुः । विसचिवादीहि विसूचिकया दंडकालशकृत्तीत्रमुलादिभित्र च । वारनी सद्यो मरणकारणवेदना, मरणं वा ।।
निरुद्धतर विधीका स्वरूप कहते हैं---
अर्थ--सर्प, अग्नि, व्याघ्र, भैसा, हाथी, रीछ, शव, चोर, म्लेच्छ, मूर्छा, तन्नि शूलरोग इत्यादिसे तत्काल मरण का प्रसंग प्राप्त होता है.