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आश्वास
दलारापना
क्षपफोपचारार्थ उपकरणप्रकारान्प्रतिनिर्षिशति--
मूलारा----वसयपडियावगं वसत्तिकाप्रतिबद्धं । तस्य अपकनिमित्तं । सागारियं गृहस्थसंबंधि । पडिहारिय अत्यजनीयं । अप्पबिहारि त्यजनीय एता श्रीविजयो नच्छति ।
एवं यथोक्तसन्यासविधिमृतस्म संवतजनविषेयं यथाकथंचिदहापनयन विधाय सांप्रत प्रसिद्धसंन्यासविधीनां आर्यिकादीनां तद्विधिमभिधत्त--
भूलाराजा अविशेपोक्तावपि स्थानरक्षार्थिका या । साहयर्थात ।। तथा चोकम्-- प्रसिद्धा यदि सन्यासे स्थानरक्षार्यिका यदि ॥ विपत्रा विधिना कार्या तदानी शिविकोत्तमा । देउल मठपतिः । सागारित्ति । सागार इति । एवं प्रकारो गृहस्थः क्षुटको वा । नदुक्तम्भरुत्यागः रूपातो यार्थी शुमकोऽय सागार: ।। कालगती देवकुली शिविकाकरणं ततोयुतम ||
सर्वजनप्रकट भक्तप्रत्याख्यानेन माना आयिकादीन निश्काशनार्थ शिबिकायाः कुटीनिशेषस्य निमा अपि शब्दाद्विमान गपीति केचित् ।।।
- अर्थ---क्षपक की शुश्रूषा करने के लिये जिन उपकरणोंका संग्रह किया जाता था उनका वर्णनवमतिका सम्बन्धी उपकरण, कुछ उपकरणा गृहस्थास लाये जाते थे जैसे औषध, जलपात्र, थाली वगैरह. कुछ उपकरण त्यागने योग्य रहते हैं. और कुछ उपकरण त्यागने योग्य नहीं होते हैं. जो त्याज्य नहीं है वे गृहस्थोंको वापिस दिये जाते हैं. कुछ कपडा वगरह उपकरणा त्याज्य रहता है. यदि सर्वजनों को विदित ऐसी किसी आर्यिकाने अथवा क्षुल्लकने सल्लेखना धारण कर मरण किया होगा तो उत्तम पालखी अथवा विमानमें उसके पावको स्थापन कर ले जाना चाहिये. संन्यास स्थानका रक्षण करनेवाली आर्यिका, गृहस्थ, मठपति, क्षुल्लक इनका मरण होनेपर शिविका अथवा विमान में इनका शव आरोहण कर गृहस्थ ग्रामके बाहर ले जाते हैं.
तेण पर संठाविय संधारगदं च तत्थ बंधिता॥ उठेतरक्खणट्ठ माम तत्तो सिरं किरवा ।। १९८० ॥ संस्तरेण समं यद्धृया मृतक विधिना दृढम् ॥ विधायोत्थानरक्षार्थ ग्रामस्य विमुखं शिरः ॥ २०५४ ।।
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