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मूलाराधना
आश्वासः
विजयोदया-अहसाबसेसकम्मा अथ सावशेषकर्माणो मथितकायाः प्रणष्टमिध्यावहास्यरत्यरतिभयशोकजुगुप्सावनिकमथनाः ॥
मध्यमाराधनाफलं गधादशकेनादिशतिमूलारा- अध। गभ्यगाराचनाफलगधि कि पने इत्यर्थः । मलिद अभिभूताः ।।
अर्थ--जिनके कर्म यने हैं, जिन्होंने अनंतानुबंध्यादि कणयोंका मथन किया है, जिनका मिथ्यात्वकर्म नष्ट हुआ है, हाम्य, रति, अरति. भय, शक, जुगुप्सा, पुरुपवेद और वीवेद, नपुंसक वेदोंका जिन्होंने मथन किया है
पंचसमिदा तिगुत्ता सुसंवुडा सव्वसंगउम्मुक्का ।।
'धीरा अदीणमणसा समसुहदुक्खा असंमुढा ॥ १९३१ ॥ चिजयोदया-चसभिदा समितिपंचकोपेता गुप्तित्रयोपेताः सुसंवृता अपाकृतसवैसंगा धीरा भवीनमनसः समसुखदुःखा असमूढाः॥
मूलारा--सुसंडा ध्यानाख्यप्रधानसंबरोपेताः ।
अर्थ--जिन्होंने पांच समितिया पाली हैं, जो तीन गुप्तिओं में तत्पर हैं, जिन्होने कर्मोका संबर किया है, अर्थात् संवरका प्रधान कारण जो ध्यान उससे जो युक्त है, जो परिग्रहोंसे दूर है, धीर हैं, जिनके मनमें दीनता नाममात्र भी नहीं रही है. जो दुःख सुखमें समान चुद्धि रखते हैं, तथा जो मोहरहित हुए हैं.
सव्वसमाधाणेण य चरित्तजोगे अधिछिदा सम्म ॥ धम्मे वा उवजुत्ता झाणे तह पढमसुक्के वा ।। १९३२ ॥ सुखदुःखसहा वृत्तज्ञानदर्शनसस्थिताः ॥
संवृत्ताः ससमाधाना शुभध्यानपरायणाः ।। २०१३ विजयोन्दया-सवममाधाणेण सर्वेण समाधानेन चारित्रे सम्यगपस्थिता धर्मध्याने प्रथमशुक्ले वा उपयुक्ताः ।। मूलारा--सन्चसमाधाणेण मनोवाकायपणिधानेन ।