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मूलाराधना
आश्वास
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मूलारा--सुइसादा सुखास्वादनपराः । किमजमा कि मम केनचिदिति सर्वेषु संघकार्येष्वनादसाः । गुणसायी गुणेषु सम्यग्दर्शनादिषु शेरत इच । सम्यक्त्वादिनिरुत्साहा इत्यर्थः । पावमुक्तपमिसेषी स्वपरयोमिथ्यात्वादिनिवेदकनिमित । कौटिल्य स्त्रीपुरुषलक्षण, धातुषादकाश्यनाटकचौर्यशचित्रगीतनृत्यवाचगंधयुक्त्यादिशालेषु कृतादराभ्यासाः । पमादिला विकादिप्रमादयतः ॥
अर्थ--इन मुनिओंका स्वभाव मुखिया बनता है इसलिये मेरा किसीसे कुछ भी संबंध नहीं है ऐसी कल्पना करके संघके कार्योंसे वे उदासीन रहते हैं. सम्यग्दर्शनादि गुणोंमें घे निरुत्साह रहते हैं अर्थात इनकी वृद्धि करनेकी उनको इच्छा नहीं होती. अपने अथवा अन्यजनोंके अशुभ परिणाम बनानवाल अर्थात् जो मिथ्यात्व, असंयम, कषायरूप परिणामाकी उत्पत्ति करत हैं ऐसे शास्त्रोंका पाप कहते हैं. जैसे निमित्त, वैद्यक, कौटिल्य (चाणक्यका अर्थशास्त्र ) स्त्रीपुरुषलक्षण, अर्थात् सामुद्रिक, धातुवाद, काव्य, नाटक चौरशास्त्र, शस्त्रलक्षण, शास्त्रविद्या चित्रकला. गांधर्व, गंधयुक्त्यादिक इन शास्त्रों को पापसूत्र कहते हैं. ये पार्थस्थादि मुनि इन शास्त्रोंका आदरसे अभ्यास करते हैं. इस विषय की प्राप्ति करानेवाली जो आशा है उससे ये बंध गये हैं. तीन गारवसे ये सदा युक्त रहते है. विकथादिक पंदरह प्रमादोंसें ये पूर्ण रहते हैं.
समिदीमु य गुचीसु य अभाविदा सीलसंजमगुणेसु ।।
परतत्तीसु पसत्ता अणाहिदा भावसुडीए ॥ १९५३ ॥ विजयोदया-समिदीसु य समितिषु गुप्तिषु च संयमगुणेषु भाषनारहिताः परव्यापारेउ मवृत्ता भावशुशाबनारताः ।
मुलारा-परतत्तीसु परव्यापारचिंतासु णाहिदा अनादृता अस्थिरा वा ।।
अर्थ--समिति, गुप्ति, इनकी भावनाओंसे-अभ्याससे ये दूर रहते हैं. संयमके भेद जो उचरगुण शील बगैरह इनसे ये दूर रहते हैं. दूसरों के कार्योकी चितामें लगे रहते है. और आत्मकल्याणके कार्योसे कोसों दूर रहते है. इसलिए इनके रत्नत्रयमें निर्मलता नहीं रहती है.
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