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मूलाराधना
आधामः
कन्दादिभावनामृताना तथाविधदेवभूयमभिधत्तेमूलारा-पदा मताः || मुलारा-असुर काया असुराः ।।
मूलारा --- करित्तु कृत्वा । भाद्रपदमासकुक्कुराणामनुहारमाणाः । कामातुरतया शुनौनामिव देवीना अनिनिंदा पुगेलुलनादिचष्टा कापिण इत्यर्थः । अयं च अपरमपि । उनयंति प्राप्नुवंचि ।।
अर्थ-कंदर्प भावनाके वश होकर ये मुनि कंदर्प जाति के देव होते हैं. किल्बिषभावनाके वश होनेसे माणोत्तर किल्विय देवपयोगकी प्राप्ति इनको होती है. आभियोग्य भावनासे जो मुनि मरण करते है न स्वर्गम अभियोग्य देव अर्थात वाहनदेव होते हैं. आसुरीभावनासे प्राणत्याग करनेवाले मुनि असुर देव होते हैं. सम्मोह भावनाके वश होकर मरण करनेवाले मुनि स्वर्गमें सम्मोह नामक देव होते हैं. कामधिकारके बाहुल्यसे ये देव दंवीके साथ हमेशा कामसेवन करते हैं. मरणकालमें जो आराधानाकी विराधना करते हैं ऐसे मुनि अन्यमी देवदुर्गती में जन्ममें लेते हैं.
इय जे विराधयित्ता मरणे असमाधिणा मरेज्जण्ह॥ तं तेसि बालमरणं होइ फलं तस्स पुन्बुत्त ।। १९६२ ॥ इत्थं विराध्य ये जीषा नियंते-संयमादिकम् ॥
तेषां यालमृतिस्तस्याःफलं पूर्वत्र धर्णितम् । २०३९ ॥ बिजयोदया-नय से विराधयित्सा एवं ये रत्नत्रयं धिनाश्य मरप्पकाले यसमाधिना मृतिमुपयांति तत्तयां वालमरणं भवति । तस्य पालमरणस्य फल पूर्वमुक्तमेध ॥
रत्नत्रयं विराध्य मृतानां कतमम्मरणं स्यादित्यत्राहमूलारा-मरेजण्ह निरन् । तं असमाधिमरणं ॥
अर्थ-जो इस प्रकार रत्नत्रयका नाश कर मरणको प्राप्त होते हैं. अर्थात् असमाधिसे मरण करते हैं. उनका यह मरण बालमरण है ऐसा आचार्य कहते हैं. बालमरणके फलका वर्णन पूर्वमें आ चुका है.
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