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मृलाराधना
आश्वासः
भूतिकुशील-भूति शब्द यहां उपलक्षण है इसलिये भूतिका अर्थ इस प्रकार समझना चाहिये-अभिमंत्रित किये गये धूल, सफेत सरसों, पुष्प, फल, पानी इत्यादिकोंके द्वारा किसीका रक्षण करना, किसीको वश करना, ऐसे कार्य करने वालको भूतिकुशील कहते है. उपर्युक्त अभिप्राय भिदीय धलियं वा' इस गाथामें भी व्यक्त किया है.
प्रसेनिका कुशीलका लक्षण इसप्रकार है. अंगुष्ठ प्रसेनिका, अक्षरप्रसनिका, प्रदीपप्रसेनी, शशिप्रसनी, और स्वप्नप्रसेनी इत्यादि विद्याओंसे जो लोकों का मन अनुरंजित करता है उसको प्रसेनिकाकुशील कहते हैं.
अग्रसेनिका कुशील-विद्याओसे और औषधोंसे असंयतोंकी जो चिकित्सा करता है वह अप्रसेनिका
कुशील है.
अशंगनिमिसको जानकर जो लोकोंको उनका उपदेश करता है वह निमित्त कुशील है.
अपजी, जाति ष कुल प्रकाशित करके जो मिक्षादिककी उत्पत्ति करता है उसको आजीयकुशील कहते है.
किसीके द्वारा उपद्रव होनेपर दुसरोको जो शरण जाता है. अथवा अनाथशालामें प्रपेश कर अपनी चिकित्साको करवाता है उसको आजीवकुशील कहते हैं.
विद्या मंत्रादिकोंके द्वारा पथ्यापहरण करके दंभ प्रदर्शन करनेवाला उसको कफकुशील कहते हैं। इंद्रजालादिकोंके द्वारा जो जनोंको आश्चर्यचकित करता है वह कुहनाकुशील है.
वृक्ष, छोटे छोटे पेड वगैरहोंको पुष्प और फलोंकी उत्पत्ति का उपाय बतलाता है. गर्भस्थापनाहिक | कार्य जो करत हैं उसको सम्मुर्छनाकुशील कहते है.
बस जातिके कीटादिक, वृक्ष, छोटे पेड इनके पुष्य फलादिकोंका जो नाश करते हैं, गर्भका जो नाश करते है. जो शाप देते हैं उनको प्रपातन कशील कहते हैं.
इन सब कुशीलोंका आचार्यन 'कायोतिक भूति कम्मे' इस गाथामें नाम निर्देश किया है. माथामें आदि शब्द पाया है इससे और भी कुशीलोके भेद होते हैं. उनका स्वरूप इस प्रकार-जो क्षेत्र-जमीन, सुवर्ण, चतुप्पदप्राणी इन परिग्रहाँका स्वीकार करते हैं. हरित, कंद, और कच्चे फल भक्षण करते है। कृत, कारित, और अनुमत ऐसी वसतिका, आहार उपाधि-इनका सेवन करते हैं। स्त्रियों की कथाओंमें प्रेम रखते हैं. मैथुन सेवामें तत्पर होते हैं
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