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मूलाराधना
आश्वाः
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___ मागको जानता हुआ भी कोई अन्य पुरुषके साथ उस मार्गके समीप जाता है उसको जैसे मार्गपार्श्वस्थ | कहते हैं वैसे अतिचाररहित संयममार्गका स्वरूप जानकर भी उसमें जो प्रवृत्ति नहीं करता हैं परंतु संयममार्गक
पास ही बह रहता है. यद्यपि वह एकातरूपसे असंयमी नहीं है परंतु निरतिचार संयमका पालन नहीं करता है इसलिये उसको पार्श्वस्थ कहना चाहिये, वसतिका को धनवानेवाला, उसकी मरम्मत करनेवाला, और यहां आप ठहरो ऐसा कहकर मुनिओंको वसतिका देनेचाला इन तीनो को शय्याधर कहते हैं. इनके यहां हार ग्रहण करना मुनिओफेलिये निषिद्ध दे. परंतु इनके यहां जो हमेशा आहार ग्रहण करते हैं. दाताकी आहार लेने के पूर्व और आहार लेनेके अनंतर प्रशंसा करते हैं, उत्पादन दोप, एपणा दोप सहित आहारको ग्रहण करते हैं. हमेशा एकही वसनिकामें रहते हैं. एकही संस्तरमें हमेशा सोते हैं, एकही क्षेत्रमें रहते हैं. गृहस्थोंके घरमें अपनी बैठक लगाते हैं. गृहस्थोपकरणोंसे अपनी शौचादि क्रिया करते हैं. जिसकी शोधना अश्क्य है अथवा जो सोधा नहीं गया है उसको ग्रहण करते हैं. सूई, कैंची, नख छेदनका शस्त्र. सांडस (जिसको चिमटा कहते है) वस्तरा तीक्ष्ण बनानेका पत्थर, वस्तरा, कर्णमल निकालनेका साधन, इन वस्तुओंको ग्रहण करते हैं. सीना, धोना, उसको झ टकना. रंगाना इत्यादि कार्यो में जो तत्पर रहते हैं एसे मुनिको पार्थस्य मुनि कहते हैं. जो अपने पास क्षारचूर्ण सोहाग चूर्ण, नमक, घी बगैरह पदार्थ कारण न होने परभी रखते है उनको भी पार्श्वस्थ कहना चाहिये. जो रात में यथेष्ट सोते हैं, अपनी इच्छाके अनुसार निछानाभी वहा पनाते हैं, उपकरणों का संग्रह करते हैं, उनको उपकरण बकुश कहते है.
जो दिनमें सोता है उसको देहबकुश कहते हैं ऐसे पार्श्वस्थके भेद हैं. कारणके बिना पाव धोना अथरा तेल लगाना, गणके ऊपर उपजीविका करना, तीन अथवा पांच मुनिओंकी सेवा करना ? ऐसे जो कार्य करता है वह भी पार्श्वस्थ है.
जिसका आचरण कुत्सित है दोष युक्त है उस मुनिको कृत्सित कहत हैं. यदि ऐसा कुशील मुनिका लक्षण किया जावेगा तो अबसमादिक मुनिओंको भी कुशीलही कहना होगा ? उत्तर-जिसका बुरा आचरण लोकमें प्रगट हुआ है उसको कुशील कहते हैं ऐसा अभिप्राय यहां समझना चाहिये.
इस कुशील मुनिके अनेक प्रकार है. कोई कौतुककुशील है- औषध, विलेपन और विद्याके प्रयोगसेही राजद्वारमें कौतुकं दिखाना, लोकमें मियता संपादन करना.