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मूलाराधना
अर्थ--इस प्रकारसे जिसने अपने आत्माको सुसंस्कृत किया है शुक्ल भ्यानको प्राप्त हुआ, शुभलेश्यासे परिणत हुआ ऐसा वह क्षपक निर्विघ्नतासे आराधना पताकाको हस्तमें ग्रहण करता है.
आधासः
तेलोकसव्वसारं चउगइसंसारदुक्खणासयरं ॥ आराहत पा सो भय मुक्खपडिमुल्लं ॥ १९२५ ॥ दवाति चिंतितं सौर्य चिनत्ति भयपादपम् ।। इत्धमाराधना देवी अन्येनाराध्यते सदा ॥ २००६ ।। यैरेषाराधना देवी सिद्धिसौधप्रवेशिनी॥
आराधिता न सैलाभः को लब्धो भुवनत्रये ॥ २००७ ।। विजयोदया-तेलोक्फसवसारं त्रैलोक्ये सर्वस्मिन्सारभूनां चतुर्गतिसंसारवुमनाशकरणीमाराधनां प्रपमोऽसौ भगवान् मोक्षमप्रतिमौल्यं ।।
मूलारा- सो अदिक्रियाकृतपरिकर्मा, शुभध्यानकतानमानसो विशुद्धलेश्यश्चाराधनां प्रयतो यतस्ततस्तत्यताका निर्षिनेन हरप्तीति पचासेन संबंध:-भोक्खपछिमोहं मोक्षस्य केतन्यस्य परिपूर्णाभूतां ॥
अर्थ-इस त्रैलोक्पमें सारभूत, चतुर्गतिरूप संसारदुःखोंका नाश करनेवाली आराधनाको जिसने प्राप्त किया है उस भगवानने जिसका मूल्प नहीं है ऐसा मोक्ष प्राप्त किया है.
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एवमधखादविधि संपत्ता सुद्धदमणचरित्ता ॥ केई खयंति खवया मोहावरणतरायाणि ॥ १९२६ ॥ पथारूयातविधि प्राप्ता विशुद्धज्ञामवर्शना
पहन्ति घालिदारूणि केचिदयानकृशानुना १२००८ ॥ विजयोदया-पयमप्रसाद विधि एवं यथाख्यासविधि संप्राप्ताः शुदर्शनचारित्राः केचित्क्षपका याति.. कर्माणि क्षपति॥
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