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मूलाराधना
या नहीं इसका विचार ही नहीं करते हैं. लोग मार्गपर चलते हैं लस कुमार्गसे वे आकुल हो रहे हैं. उनको देखकर यह अझ मी वैसा ही कुछ मी आचरण करता है. जीयमें रागद्वेष प्रबल है वे सन्मार्ग पर इसको चलने नहीं देते हैं. ज्ञान और श्रद्धानसे युक्त होनेपर भी यह जीव सन्मार्ग से पराङ्मुख होता है.
आश्वास
१६७८
इय दुल्लहा पबोहीए जो पमाइज्ज कह बि लहाए ॥ सो उल्लट्टइ दुक्खेण रदणगिरि सिहरमारुहिय ।। १८७१। इत्थं यो दुर्लभां घोधि लब्ध्वा तत्र प्रमाद्यति ।।
रत्मपर्वतमारुहा ततः पतति नष्टधीः ॥ १९४२ ।। विजयोदया-रय दुलहा पयोहीए उक्तेन क्रमेण वुर्लभायां वीक्षाभिमुखायर्या यही लब्धायामपि यः प्रमाद्यत्यसी रानगिरिशिखरमारहा ततः पतति प्रमादी।
एवं दुर्लभा बोधि लब्ध्वापि प्रमाद्यतमनुझोचतिमूळारा-बटादि पतति । रागिरि सिहरे मेरुदागम् ॥
अर्थ-ऊपर कहे मुजब दीक्षाभिमुख बुद्धि दुर्लभ है. उसकी प्राप्ति होनेपर भी यदि कोई जीव प्रमादी बनेगा तोरलपर्वतके शिखरपर चढ़कर फिर उससे वह गिरता है ऐसा समझना चाहिये.
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फिडिदा संती बोधी ण य सुलहा होइ संसरंतस्स ॥ पडिदं समुद्दमझे रदणं व तमंघयारम्मि || १८७२ ॥ नष्टा प्रमावतो धोधिः संसारे खुर्लभा भयेत् ॥
नष्ट तमंसि सव्रत्नं पयोधो लभ्यते कथम् ॥१९४३ ।। विजयोदया-फिडिदा संती बोधिनिष्टा सती दीक्षाभिमुखा युधिः पुनर्न सुलमा भवति संसरतः। अंधकार समुद्रमध्ये पतित रत्नमिव । '