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मूलाराधना
आश्वास।
उक्तार्थसमर्थनार्थ माह.मूलारा--फिडिदा विनष्टा ॥
अर्थ--यह दीक्षाकी बुद्धि नष्ट होनेपर फिर मिलती नहीं है. अंधकारमें समुद्र में रत्न फेक देनेपर जैसे पुनः रत्न नहीं मिलता है. बैंस दीक्षासे बदि हट जानेपर पुनः दीक्षा भरण काता दुर्गा है
PATANAMA
ते घण्णा जे जिणवर दिवे धम्मम्मि होति संबुद्धा ॥
जे य पवण्णा धम्मं भावेण उवट्टिदमदीया ॥ १८७३ ॥ विपुलसुफलाना कल्पने कल्पवल्ली भवसरणतरूणां कल्पने या कठारी॥ भवति मनसि सुद्धा सा स्थिरा शुद्धपोधिः फलममलमलभिप्राणिप्तव्यस्य तेन ॥१९४४||
इति बोधिः । विजयोदया-स्पष्टोत्तरा गाया । योधित्ति || जिनोक्तधमें सबुद्धान्भावन परिणतांश्च परिणीतिमूलारा-स्पष्टम् ।। बोध्यनुप्रेक्षा ।।
अर्थ--जो पुरुष जिनेश्वरने कहे हुए धर्ममें प्रबुद्ध होते हैं वे धन्य है. तथा जिन्होंने प्रबुद्ध होकर जैन धर्मका आचरण किया है-करते हैं अर्थात् हृदयसे जिन्होंने जैन धर्मको अपनाया है ऐसे महात्मा इस संसारमें धन्यताके पात्र हैं, अनुप्रेक्षाओंका वर्णन समाप्त हुआ.
प्रस्तुतमर्थमुपसहरति--
इय आलंबणमणुपेहाओ धम्मरस होति ज्झाणस्स ।। ज्झायंतो ण वि णस्सदि ज्झागे आलंबणेहिं मुणी ॥ १८७१ ॥