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मूलाराधना
आश्वास।
अर्थ-लकडीओसे अग्नि वृद्धिंगत होता है परंत उनके भानमें यह शांत होता है. तथा परिग्रहाँसे कपाय बढ़ते हैं और उनके अभावमें वे नष्ट होते है.
जह पत्थरो पड़तो खोभेइ दहे पसण्णमवि पंकं ॥ खोभेइ पसंतंपि कसायं जीवस्त तह गंथो ॥ १९१५ ॥ कषायो ग्रंथसंगेन क्षोभ्यते तनुधारिणाम् ॥
प्रशांतोऽपि दादीनां पाषाणेनेव कर्दमः॥ १९९५ ।। चिजन्योदया-जह पत्थरो पडतो यथा पापाणः पतन हर प्रशांतमपि पंक क्षोभयति, तथा जीवस्य कपायं ग्रंथाः क्षोभयति ॥
ग्रंथानां कपायोभणसामध्यं दृश्यतिमूलारा--सोभेदि उदीरयति ॥
अर्थ-जैसे हद में पाषाण पडनेसे तलभागमें दबा हुआ भी कीचड क्षुब्ध होकर ऊपर आता है वैसे परिग्रह जीवके प्रशांत कपायोंको भी प्रगट करते हैं.
अभंतरसोधीए गंथे णियमेण बाहिरे चयदि ॥ अभ्भंतरमइलो चेव बाहिरे गेण्डदि हु गंधे ॥ १९१५ ॥ अभंतर सोधीए बाहिरसोधी वि होदि णियमेण ॥ अब्भतरदोसैण हु कुणदि गरो बाहिरे दोसे ॥ १९१६ ॥ अंतर्विशुद्धितो जीचो बहिर्ग्रथं विमुंचति ।। अंतरामलिनो याचं गृहीते हि परिग्रहम् ।। १९९६ ॥ अंतर्विशुद्धितो जन्तोः शद्धिः संपयते बहिः॥ याचं हि कुरुते दोषं सर्वमांतरदोषसः ॥ १९९७ ।।
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