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VERSE
मूलाराधना
आश्वासा
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धर्म सुननेपर भी उसका ज्ञान होना दुर्लभ है. क्योंकि श्रुतज्ञानावरण कर्मके उदयसे उपदेशका अभिमाय जाननेकी पात्रता नहीं रहती है. कमी गुरूका उपदेश पूर्वमें नहीं सुना था, इसलिये मन एकाग्र नहीं होता है. जीवादिक तत्व सूक्ष्म हैं इसलिये भी मन एकाग्र नहीं होता है. श्रुतज्ञानका आधारभूत क्षयोपशम प्राप्त होनेपर मन एकाग्र हो सकता है. वक्ताके वचनोंमें सुंदरता होनेसे भी मनमें एकाग्रता उत्पन्न होती है. संपूर्ण देश, कुल, आरोग्य दीर्घायु इत्यादिक उत्तरोत्तर दुर्लभ है ऐसा ज्ञान होना कठिन है.
धर्मका स्वरूप जानने पर भी सम्पग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, तप, दान, पूजा एतत्स्वरूपी आत्मपरिणाम ही धर्म है यही धर्म अभ्युदय व मोक्षसुखको देता है ऐसी श्रद्धा होना कठिन है. दर्शनमोहनीय का उदय होनेसे श्रद्धान नहीं होता है. उपदेश, काल, करणलब्धि ये बातें कभी कभी जीवोंको प्राप्त होती हूँ सर्वदा नहीं है.
लहेसु वि तेसु पुणो बोधी जिणसासणम्मि ण हु सुलहा ॥ कुपधाकुलो य लोगो जं वलिया रागदोसा य ।। १८७० ॥ देशादिष्वपि लब्धेषु दुर्लभा वोधिरजसा ॥
कुपवाकुलिते लोके रागद्वेषवशीकृते ॥ १९४१ ।। विजयोदया-लद्धेसु वि तेसु पुणो लम्वष्यपि तेषु मनुजभवादिषु घोधिक्षिाभिमुखा युदिन सुलभा प्रबलत्वात्सं. यमघातिकर्मणः । कुमार्गाकुलत्वात् लोकस्य बाहनामाबरणमेघ प्रमाणयन यकि चनाचरति, घलचंतश्च रागद्वेषाः शानश्रद्धामोपेतमपि न सन्मार्ग दौकितुं ददति ॥
मूलारा-कुपचाकुलो लोको हि बहूनामेवाचरण प्रमाणयन् यत्किचनाचरति । दृष्टानुसारी च प्रायेण जनः स्वकार्य भुयति । यलिया तत्वज्ञानअद्भानतोलिसदाचरणानुचरणप्रतिबंध कायात् ।।
अर्थ मनुजमव वगैरहकी प्राप्ति होने पर भी जिनधर्ममें दीक्षा धारण करनेकी बुद्धि उत्पन्न नहीं होती है. संयम धारण करनेकी बुद्धि प्राप्त होना बहुत कठिन है क्योंकि संयमघात करनेवाला कर्म प्रबल रहता है. लोक प्रायः बहुत लोगोंका आचरण देखकर वैसा स्वयं भी आचरण करते हैं. अन्य जनोंका आचरण योग्य है
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