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मूलाराधना
आवाह
आयुधं योगिनो पानं कषायसमरे पर।
निानः संस्तर युद्ध निरखभटसनिमः ॥ १९५६ ॥ विजयोक्या-पयं कसायजुद्ध हि कषायसंग्रहारे ध्यानमायुधं झएकस्य भवति । ध्यानद्दीनः क्षपकः युद्धे निरायुध इव न प्रतिपक्ष अंदतुमलं कायविनाशकारित्य ध्यानस्थानया कथितं ।
ध्यानस्य कषायविनाशकत्वमाहमूलारा-बाउबं प्रहरणम् ॥
अर्थ----कषायोके साथ युद्ध करते समय ध्यान मुनिको शसके समान उपयोगी होता है अर्थात् पानरूप खडसे संयमी मुनि कोका संवर और निर्जरा करते हैं. शस्त्ररहित बीर पुरुष युद्धमें शत्रुका नाश नहीं कर सकता है. वैसे ध्यान के बिना क्रमशत्रुको पनि नहीं जीत सकते हैं. कपार्योको नष्ट करनेका सामयं ध्यानमेंही है ऐसा इस गाघाका अभिप्राय है.
रणभृमीए कवचं होदि ज्झाणं कसायजुडम्मि । जुद्धे व णिराबरणो झाणेण विणा हवे खाओ ॥ १८५३ ॥ कपायसंयुगे ध्यानं मुमुक्षोः कवनो हदः ॥
ध्यानहीनस्तदा युद्धे निःकंकरभटोपमः । १५५७ ।। विजयोदया-रगाभूमीप युद्धभूमौ कवच काय ध्यानं कयनों भवति पतेन कपायपाडारक्षा कति ध्यानमित्याख्यातं । ध्यानाभावे दायमाचए। जुद्धे व णिरावरणी युद्धे निराचरण व भवति ध्यानेन विना क्षपकः ।।
भ्वानस्य कापायपीडारक्षकत्वमाहमूलारा-णिराबरणे सन्नाहरहितः ।
अर्थ-रणभूमीमें कवच जैसा रक्षण करता है वसा कपायके साथ युद्ध करते समय कबचके समान ध्यान मुनिका रक्षण करता है.
कषायसे होने वाली पीदाका नाश ध्यान करता है इसलिये ध्यान रखकत्व गुण है ऐसा इस गाथासे सिद्ध