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मूलाराधना
आश्वामः
जीवदया कभी कभी करता है. प्रशस्त रूप नाम कर्मके उदयसे सुंदर रूपकी माप्ति बहुत क्लेशसे प्राप्त होती है. परजीवों को हमेशा संताप देने में ही सत्पर रहनसे सर्वदा दहमें रोग उत्पन्न होता है. परसंतापको दूर करना, वेयावत्य करना ये बाते कमी कमी करनेमे नीरोगताकी प्राप्ति होना दुर्लभ होगया है. प्रायः यह आत्मा दुसराको आयुको नष्ट करता है. इस लिये यह स्वल्पायु हो जाता है. कदाचित् अहिंसा व्रतका पालन करनेसे यह पुरुप कभी २ चिरंजीवी होता है. इस लिये चिरजीविताभी दुर्लभ है.
समीचीन बानको क्षण देना, उससे भत्सर करना, ज्ञानमें विघ्न करना, उसका नाश करना, चक्षुरादिक इंद्रियोंका नाश करना, इन कार्योसे इसको भतिज्ञानावरणका और श्रुतज्ञानावरण कर्मका बंध होता है. जिसका उदय होनेसे यह जीव अतिमंदबुद्धि हो जाता है. लक्षावधि जन्मोकी प्राप्ति होनेपर मति श्रुतमानावरण कर्मका क्षयोपशम होनेके योग्य शुभपरिणाम जब होते हैं तब कदाचित् विचकको उत्पन्न करनेवाली घुद्धि उत्पन्न होती है.
बुद्धि उत्पन्न होने परमी हिताहितका विचार सुझानेवाला धर्मश्रवण प्राप्त होना अतिशय कठिन है. रागओवरहित, समीचीन ज्ञान प्रकाशके द्वारा दुर्भेय मोहधिकारको हटानेवाले, संपूर्ण प्राणिमात्रापर दया करनेमें उद्युक्त रहनेवाले मुनिराज दुर्लम है इस लिये धर्मश्रत्रणका पाना दुर्लभ हो रहा है.
तीव मिथ्यात्वके उदयसे गुणिजनो द्वेषभाव उत्पन्न होता है. मिध्याज्ञानकी प्राप्ति होनेसे बुराग्रह चढ़ता है, मैने जो पदार्थ स्वरूप जान लिया है वहीं सच्चा है ऐसी धारणा होनेसे, आलस्यसे यतिजन स्वपरोद्धारमें प्रवीण रहते हैं इसका परिझान न होनेसे यह जीव यतिराजोंके पास जाता नहीं है. इससे धर्मश्रवणसे इसको वंचित रहना पडता है.
कदाचित् पापका उपशम होनेपर यतिजनके पास यह पुरुष जाता भी है. वहाँ नयोंके अनुसार प्रश्न होता है, प्रशस्त भाषण बोलने वाले गुरुजन धर्मोपदेश देनेपर इसको धर्मश्रवणका लाभ होता है. इससे धर्मश्रवण दुर्लभ है यह सिद्ध हुआ, यह जीव यतिके स्थानपर जाकर भी यथेच्छ सो जाता है. अथवा स्वतः दुसराके साथ निःसार भाषण करने लगता हैं. मूखोंके भाषण सुनता है. विनयका आश्रय नहीं करता है. इस लिये मी आचार्यजीने धमत्रवणकी दुर्लभता दिखाई है.
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