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मूलाराधना
आश्वासः
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कषायतस्करा रद्रा दयादमशमायुधैः ।।
शक्यंत रक्षितुं दिन्पैरायुधैरिय तस्कराः ।। १९०८ ॥ विजयोदया-उवसमदयादमाउद्दकरणा उपशम कपास्यवदनीयस्थ कर्मणस्तिरोमयनं, क्या सर्थप्राणियिपया, दमः कषायदोषभावनया चिचनिग्रहः । पते भय आयुधाः करे यस्य तेन । सायचारहि कपाथचोरेभ्यः । रक्खा सक्का कार्नु रक्षा शक्या कर्तु, मायुधकरण रक्खाव चोरोहिआयुधहस्तेन गोरेश्यो रक्षेच, क.पायदोषपरिमानेनासकृत् प्रवृत्तेन क्रोधादिनिमित्तषस्तुपरिहारेण तत्प्रतिपक्षमादिपरिणामेन च कषायनिवारणं ।। उक्तं च ॥ जेयस्सदा क्रोधमुपाश्रितः क्षमा, अयेकच माने समुपेन्य मादच । तथंव मायामपि वार्जबाजयेत् , जयेच्च संतोषवशेन लुब्धतां । जिताः कषाया यदि किस जितं कषाय मूलं सकलं हि धनमिति ॥
मूलारा-जबसम-कषायवेदनीयकर्मणा उदयनिमित्तबजनेन श्रमादिभावनया था तिरोभावादात्मनः प्रसत्तिः ।। दमकवायदोषभायनया चित्त निग्रहः ।।
अर्थ----कपाय वेदनीय कर्मका उदय न होना उसको उपशम कहते हैं. सर्व प्राणिऑफे ऊपर उनका दुःख देखकर अपना अंतःकरण आर्द्र होना दयाका लक्षण है.कषायोंके दोषोंका विचारकर चित्तको स्वाधीन रखना निग्रह कहते हैं. उपशम, दया और निग्रह ये तीनशस्त्र जिसने अपने हाथ में लिये है यह पुरुष कपायरूपी पोरोसे सशस्त्र मनुष्य जैसा चोरोंसे अपना रक्षण करता है रक्षण करता है- संवरकी इच्छा रखनेवालोने वारंवार कषायोंके दोषोंका परिज्ञान कर लेना चाहिये. जिन वस्तुओंका आश्रय करनेसे क्रोधादि कषाय उत्पन्न होंगे उनका त्याग करना चाहिये. और क्रोधादिकों के प्रतिपक्षीरूप क्षमा, विनय, सरलपना, निलोमता वगैरह परिणाम आत्मामें उत्पन्न करने चाहिये. इससे कपायोंका अवश्य निवारण होगा. इस विषयमें ऐसा कहा ई-क्षमाका आश्रय लेकर क्रोधको जीतना चाहिये. मार्दवके आश्रयसे मानकषायका पराभव करना चाहिये. आर्जन गुणसे मायाको और संतोष धारण कर लुब्धताका परिहार करना चाहिय. यदि जिसने कपाय जीत हैं उसने सर्व जीत लिया ऐसा समझना चाहिये. योंकि संपूर्ण कर्मबंधन के लिये कषायही कारण हैं. मिथ्यात्वनवर कपायसवरं निरूप्य दियघर ध्याच
इंदियदुइतस्सा णिग्धिप्पंति दमणाणखलिणेहिं ॥ उप्पहगामी णिग्धिप्पंति हु खलिणेहिं जह तुरया ॥ १८३७ ॥