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मूलाराधना
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अर्थ-स्वर्गलोक में और मनुष्यलोक में जितने सुख प्राप्त होते हैं ये सत्र धर्मसे ही प्राप्त होते हैं. मोक्ष सुखकी प्राप्ति भी धर्मसे ही होती है.
ते घण्णा जिणधम्मं जिणदिहं सव्वदुक्खणासयरं ॥
fear त्रिधिदिया विशुद्धमणसा णिरावेक्खा ॥ १८६० ॥ ते धन्या ये नरा धर्म जैनं सर्वसुखाकरम् ||
निरस्तनि विग्रंथाः प्रपन्नाः शुद्धमानसाः ॥ १९३१ ।।
घण्णा पुण्यवंतः । जिन धर्म सर्वदुःखनाशकरं प्रतिपक्षाः शुद्धेन मनसा दृढपृतिका,
विजयोत्रा
निर्व्याकुलाः ॥
मूलारा-दधिदिया अविचलधूतयः ।
अर्थ- जिन्होंने निर्मल मनसे निःस्पृह होकर धैर्य धारण कर सर्व दुःखोंका अन्त करनेवाला जिनेश्वर प्रतिपादित जिनधर्म धारण किया है वे पुरुष धन्य हैं.
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विसावीए उम्मग्गविहरिदा सुचिरमिंदियस्सेहिं ||
जिदिबुदिप घण्णा ओदरिय गच्छेति ॥ १८६१ ॥ ये च बीद्रियाश्वेभ्यो नीता विषयकानने !!
धर्ममार्ग प्रयन्ते ते धन्या नरपुंगवाः । १९३२ ॥
विजयोदया-बिसगाडबीर वाटव्यां उन्मार्गविहारिण सुनिमित्रियावैभीताः संतः ते जिनदृष्ट निवृतिमार्ग गच्छति धन्या इंद्रियाश्वेभ्योऽवस्थ ||
मूलारा — उम्मग्गविहरिदा इंद्रियामिध्यात्वादित्रयं विशेषेण नीताः । ओरिय इंद्रियाश्वेभ्योऽवरुह्य ||
अर्थ - इंद्रियरूपी घोटे इस जीवको उन्मार्ग में दौड़कर विषय रूपी जगलमें ले जाते है. ऐसी परिस्थिवीमें जो इंद्रियरूपी अश्वोंसे नीचे उतरकर जिनेश्वरने देखे हुए मोक्षमार्गपर जाते हैं वे पुरुष जगमें धन्य समझने चाहिये.
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आश्वासः
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