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बूदाराचना
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अर्थ -- बंधु मित्र और परिजनोंके साथ अपना रहना भी नित्य नहीं है जैसे रास्तेमें अनेक दिशा और देशसे आये हुए पथिक भिन्न भिन्न स्थानके प्रति जानेवाले होते हैं परंतु मार्गके समीप के सघन जो पलाश: खदिर वृक्ष सूर्यकिरणों को निवारण करनेवाली विस्तृत, शीतल, विपुल छाया क्षणापर्यंत बैठकर विश्रांति लेते हैं अनंतर वे भिन्न भिन्न स्थानको प्रयाण करते है तत मित्रादिक बंधुओं का सहवासभी अनित्य है. बांधवोंकी प्रीति मी अनित्य है, प्रणयकलहरूपी धूल पद से कुपित प्राणप्रिय स्त्रीके कुदनेवाली मछलकेि समान सफेत आखों में जैसा लालपना थोडी देरतक रहता है वैसा मित्रादिक बंधुओंका सहवास भी थोडी देरके लिये है. अप्रिय आचरण रूपी विषण प्रेमरूपी नेत्रका नाश होता है. यह संपूर्ण प्राणिओंके अनुभव में आई हुई बात है.
रात एगम्मिदुमे सउणाणं पिण्डणं व संजोगो । परिवेसोत्र अणिन्चो इस्सरियाणाधणारोम्गं || १७२० ॥ संयोग देहिनां वृक्षे शर्वर्यामिव पक्षिणाम् ॥
आज्ञेश्वर्यादयो भाषाः परिवेषा इव स्थिराः - १७८७ ॥
विजयोदयात रात्रौ । गमि तु एकस्मिन् हुमे। सगुणाणं पचिणां । पिण्डणं व प्रिण्डित
संजोगो सं योगो यस्यास्तसमुखं तत्र घयं प्रास्यामोन्योन्यमित्य कृतसंकल्पानां यथाकथंचिन्योन्यमातिररूपकाला तथा प्राणभृतामपि समानकालका मारुतप्रेरितानामेकस्मिन कुलविटपिनि कतिपयविभाषी संप्रयोगः । परिसो व परिवेष इध । अणि अभियं । किं ? सिरियाणाधणारोगं । ऐश्वर्ये प्रभुता भाशा धनं भारोग्यं च ॥
मूला- दुमे वृक्षे । संजोगो अकृतसंकल्पानां प्राणिनां एकस्मिन्कुले अन्योन्यमाप्तिः । परिबेसो सूर्यपरिधिः । इरियाणं प्रभुत्वमाशां वा ॥
अर्थ- जैसे रात में एक वृक्षपर पक्षियोंका समुदाय आकर बैठता है हम सब मिलकर एक वृक्षपर निवास करेंगे ऐसा मनमें संकल्प कर वे वृक्षपर आकर नहीं बैठते हैं. रातमें निवासकर प्रातः काल में वे वहांसे स्वेच्छासे गमन करते हैं वैसे प्राणीभी समान कालरूप वायुसे प्रेरित होकर एक कुलरूप वृक्षपर कुछहि कालपर्यंत आकर उत्पन्न होते हैं. जैसे सूर्यके चारो तरफ परिवेश उत्पन्न होता है परंतु वह थोडे कालतक ही टिकता है वैसे जीवोंमें आरोग्य सामर्थ्य, ऐश्वर्य थोडे दिनका है.
आवासः
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