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मुलाराधना
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आश्वासः
उपशमन होना ही मूल कारण है. अंतरंग कारण कर्य जब उपशांत होता है तब औषधि और पथ्य सेवन रोगनाश करने में समर्थ होते हैं अन्यः । निगल हो जाते है,
विज्जाहरा य बलदेवयासुदेवा य चक्कवट्टी था । देविंदावण मरणे कस्सइ कम्मोदए होति । १७३३ ॥ पलकेशवचशिदेवविद्याधरावयः ॥
सन्ति कर्मोदये व्यक्तं शरणं न शरीरिणाम ।। १८८९ ।। विजयाडया-विजाहरा य विद्याधरायो महायलपराक्रमा अपि श शरणं भयंति कोदय रति गाथार्थः ॥ नलाग--सटम् ।
अर्थ--जन कर्मोदय तीव्र होता है तब महापराक्रमी विद्याधर, बलदेव, वासुदंच और चक्रवर्ति भी प्राणीका रक्षा करने में समर्थ नहीं होते हैं. इतनाही नही. देवेंद्रभी उस प्राणीका रक्षण करने में असमर्थ है.
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वोल्टेज च कमतो भूमि उदधि तरिग्ज पबमाणो ॥ ण पुणो तीरदि कम्मरूल फलमुदिष्णस्स बोले? ॥ १७३१ ॥ गन्नुल्लंघते क्षोणी नरस्तरति नीरधिम् ।।
नातिक्रांतुं पुनः कोपि कर्मणामुदयं क्षमः ॥ १८१ ॥ विजयदया-बोल्लज्ज उल्लंघयेत् गछन भूमि, समुद्रातरुत्प्लवमानः । उदीयमय कारणः फलमुलंधयितुं न चत्ति कोऽयो वा महावलोगि ॥
मलारा-बोलेज नरन् । चकमो पझ्या गछन् । एवमाणो 'लवमानः । तीरदि शक्नोति ।
अर्ध--भूमिपर चलता हुआ पाणी भूमीके अंततक जा सकेमा समुद्रको भी उलंधकर जा सकेमा, परन्तु कर्मका उदय आनेपर उसको उलंघनकी ताकद महाबलवान पुरुषों में भी नहीं है. अल्पशक्तियों की तो क्या कथा ?
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