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मूलाराधना १६२०
१ जैसे आकाश में इंद्रधनुष्य, बिजली, और मेघ अकस्मात् उत्पन्न होते हैं वैसे देवोंका अकस्मात् जन्म होता है. इन देवोंका जन्म अशुचितासे - अपवित्रता से रहित होता है ऐसा समझना चाहिये. २ चात पित्त और कफ इन तीन दोषोंसे जो व्याधिया मनुष्य देहमें उत्पन्न होती हैं उनसे देवोंका शरीर रहित होता है. स्वेद उनमें नाममात्र भी नहीं रहता है. सदा तरुणताही रहती है. सर्वावयवपरिपूर्णता और उत्तम कांती से वह सदाही युक्त होता है.
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३ उण विद्या यहि दे और लीलासे वह मन हरण करता है. निर्मल वस्त्र, वर्ण, स्पर्श, सुगंध, मिष्ट भागण और हास्य से उसकी शोभा चित्तको अपने तरफ आकर्षित करती है. ऐसा शरीर शुभ कर्मके उदयसे देवोंको प्राप्त होना है.
४ जब उपपाद शय्यावर देवका जन्म होता है तब देव देवांगना पेसे उसके सामने आकर नमस्कार करते हैं. और गीत वाद्यादिक ध्वनिओसे उसका अभिनंदन कर अपना हर्ष भाव प्रकट करते हैं उसकी उपासना करते हैं.
५ उत्तम लक्षणोंसे युक्त, प्रफुल्ल कमल समान सुंदर ऐसे हाथोंसे किया हुआ नमस्कार ये उत्पन्न हुए देव ग्रहण करते हैं. चंद्रके समान सुंदर मुखवाले ये देव स्निग्ध दृष्टिसे हंसकर देवोंके नमस्कारका स्वीकार करते हैं६ पर्वत शिखरपर बैठे सिंहके समान सिंहासनपर बैठे हुए उन उत्पन्न हुए देवोंका आनंदित हुए देव सुवर्ण कलशसे अभिषेक करते हैं,
७ हे देवेंद्र के समान गुणोंसे हमारे मुखकमलोंको आप प्रफुल्लित करो. और हमारे ऊपर आपका दीर्घकाल तक आधिपत्य रहे ऐसी देव उनकी वचनोंके द्वारा स्तुति करते हैं.
८ वे देवेंद्र मानो ग्रीष्यकालके सूर्य ही हैं ऐसे रत्नोज्ज्वल मुकुट मस्तकपर धारण करते हैं. हार, अंगद, कुंडल वगैरह अमूल्य रत्नाभरणोंसे ये अलंकृत रहते हैं.
९ बिजलीसे व्याप्त हुए सुंदर मेघोंको, रत्नोंसे जडित सुवर्ण पर्वतों को अलंकृत करते हुए वे देव अतिशय शोभाको धारण करते हैं.
१० जो दिव्य बल, वीर्य और पराक्रमोंसे युक्त हैं. जिनका शरीर दिव्य और दीप्तियुक्त है. ऐसे देव
आश्वासः
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