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मूलाराधना
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सरिसीए चंदिगाये कालो वेस्सो पिओ जहा जोन्हो ॥
सरिसे वि तहाचारे कोई बेस्सो पिओ कोई ॥ १८१० ॥
निसर्गतः कोपि समेऽपि वल्लभो विचेष्टतेऽन्योऽसृमतामवल्लभः ॥
समानरूपे सति चंद्रिकोदये प्रियो हि पक्षो धवलः मिथोऽपरः ।। १८८१ ॥ विजयोदया-सरिसीए चंविगाए चंद्रिकायां समानायामपि । कालो थेस्लो कालपक्षो द्वेष्यः । पिनो जहा जो दो शुक्लपक्ष था प्रियः । सरिसे वि तहाचारे सहशेप्याचारे द्वयोः पुसोः ॥ कोई येस्सो पियो कोई कश्चित् वेष्यः प्रियः ॥ मूलारा - चंदियाए ज्योत्सना सत्यामपि । कालो कृष्णपक्षः । जोदो सितपक्ष कोई दुर्भगनामकर्मोदयं प्राप्तः ||
अर्थ – चंद्रका प्रकाश दोन पक्षमें समानही रहता है नोभी कृष्णपक्ष लोकोंको अप्रिय लगता है और शुक्लपक्ष प्रियसा मालूम पडता है. वैसे आचार समान होने परभी किसीको लोक अप्रिय समझते हैं और किसीको क्षिय समझते
इय एस लोगधम्मो चिंतितो करेड् णिव्वेदं ॥
धण्णा ते भयवंता जे मुक्का लोगधम्मादो ॥ १८११ ॥
विचित्य मान जगतो विचेष्टितं विचित्ररूपं भयदापि दुर्गमम् ||
करोति वैराग्यमनन्यगोचरं दुरीहितं पूर्वमिवोदयं गतम् || १८८२ ॥ एख लोगधम्मो अयमेष प्राणिधर्मः। विज्जिसो चिंत्यमानो करेह शिव्येदं निर्वेदं करोति । धण्णा ते भयवंता पुण्यवंतस्ते यतयः जे मुक्का लोगघम्मादो ये मुक्काः प्राणिधर्माव्यावर्णिवात् ॥
विजया
प्राणिस्वरूपचितामुपसंह स्तत्फल माह
मुलारा- लोगधम्माको प्रावर्णितमणिस्वरूपे अनासक्तपिता इत्यर्थः ॥
अर्थ - इस प्रकार यह लोकोंका धर्म है. इसका विचार कर कोई महात्मा विरक्त होता है. वे पूज्य ऋषि धन्य हैं जिन्होने लोकधर्मका त्याग किया है.
आश्वास
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