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मृलाराधना
आवास
देहाशुचित्वं मीमांसते--
मूलारा-अद्विदलिया अस्थीनि दलानि पत्राशि यस्यां सा अस्थिवलिका सिरावग्वदा । कुणिमकुडी कुटीवा प्रांगशब्दस्य गतार्यवाहोपः ।। उक्तं च --
अस्थिजालदला स्नायुधलकबद्धातिनिदिता ॥
अशुन्चंगकुटी मोसमृतिकाकृतलेपना || अर्थ --- इस गाथामें शरीररूपी झोपडीका वर्णन करते हैं. .
यह शरीररूपी झोपडी हाडोंमें बनी है. अस्थिरूपी पत्नोंसे यह झोपड़ी रची गई है, नसा जालरूप बकलसे बांधी गई है, मांगरूपी भट्टोमे ये लीपी गई है. अपवित्र रक्तादि पदावास भरी हुई हैं और जुगुप्सा उत्पन्न करनेवाली है.
गालो धोतो सुद्धिमुवयादि जब जलादीहि ॥ तह देहो धोव्वंतो ण जाइ सुद्धिं जलादीहि ॥ १८१७ ॥ निलमलिनः कायो धाग्यमानो जलादिभिः ।।
अंगार व नायाति स्फुट शुद्धिं कदाचन ॥ १८८८ ॥ विजयोदया-इंगालो योवना प्रक्षाल्य माना मी न शुद्धिमुपयाति, न शक्रतामुपयाति । जह यथा । जलादी जिलादिभिः तह देहो धोवीनरी प्रश्नाक्ष्यमान ग जाहि मुझे जलादीनि याति झदि जहादिभिः ॥
देहस्थाशक्यशोधरस्वाममूलारा-पष्टम् ।
अर्थ-अंगारको पानी वगैरह के द्वारा धोनेपर भी वह अपना कालावर्ण छोडकर सफेद नहीं बनता है। वैसे शरीरको धोनेसे शुद्ध नहीं होता है.
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RAMATATE
सलिलादीणि अमेझं कुणइ अमेज्झाणि ण दु जलादीणि ।। मेऽझममेझं कुव्वंति सयमवि मेज्माणि संताणि ॥ १८१८ ॥
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