________________
मूलाराधना
१६२२
सागरोंसे उनका आयुष्य नही नापा जाता है. और देवोंका आयुष्य सामराको होता है इस लिये देवोंको चारवार अनेक देवनाओंका वियोग होता है.
२१ मृत्यु के समय में होनेवाले दुःखका विचार कर उनके मनमें दुःख उत्पन्न होता है जैसे व्याघ्रके समीप बांधे हुए हरिणको दुःख होता हैं वैसे इन देवोंको मृत्यु समय दुःख होता है.
२२ कैदी होने का प्रसंग आनेपर जैसा मनुष्यको बहुत शोक और भय उत्पन्न होता है पैसे देवभी यहांका अयुष्य समाप्त होनेपर हमको मनुष्यखी के गर्भ में जो कि कदखाने के समान है रहना पडेगा ऐसा विचार कर बहुत शोकयुक्त और भगवान होते हैं.
२१ गर्भके अनतर अपवित्र ऐसे मूत्रमार्गसे हमको बाहर निकलना पडेगा, यह तो बहुत कष्टकी बात हैं. यह मनुष्य जन्म महान् अपवित्र है ऐसा विचार करने से उन देवोंको महान भय होने लगता है.
२४ इस स्वर्ग में हजारो वर्ष बीतनेपर भी इमको क्षुधा बाधा न होती थी. परंतु मनुष्यत्व प्राप्त होनेपर सर्पिणीके समान यह क्षुधाचाघा हमको तकलीफ देगी हा यह पढा कष्ट है. २५ देव गती में एकपक्ष बीतने पर उच्छृंस लेते थे परंतु यहां मनुष्यगती में उच्छ्वासका भी परिश्रम होगा हाय हाय इससंसारसमुद्र में रहना वा कठिन है२५ इस देवावस्थामें रोग, जरा- वृद्धावस्था, इंद्रिय विकलता, इत्यादि दोष नहीं रहते हैं. परंतु मनुष्यमें ये बायें अवश्य भोगनी पडेंगी ऐसा मनमें देव विचार करते हैं. यहांसे हम च्युत होनेके अनंतर दुःखद परिस्थिति प्राप्ति होगी ऐसा वे विचार करते हैं.
२६ यद्यपि देव परतंत्र नहीं होते है. तथापि उपद्रवयुक्त देशको मानो हम प्राप्त हुए हैं ऐसा समझकर मनमें शोक उक्त होकर अतिशय तीव्र भीतिको प्राप्त होते है.
२७ जिनको कभी भी रोग पीडा नहीं हुई श्री ऐसे भी देव आयुष्य समाप्ति के अनंनर इस मनुष्य लोक में उत्पन्न होते हैं. ऐसा समझकर कोन विद्वान देवावस्थाको अच्छी समझेगा ? अर्थात् वह भी कटयुक्त है ऐसा समझकर विद्वान लोक उसमें अनादर करते हैं.
२८ ये देव अपने अवधिज्ञानसे बहुत दूर की बात भी जानलेते हैं. अतः आगे आनेवाली विपत्तिको जानकर वे प्रथम ही भययुक्त होते हैं. और तदनंतर वास्तविक भयका अनुभव करते हैं.
आश्वास
9
१६२२