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मूलारावना
आश्वासः
अर्थ-इस लोकमें माताभी पत्नी होती है और पत्नी भी माता होती है. अर्थात स्ववीयसे खुद उसमें उत्पन्न होकर यह पतिरूपजीव उसका पुत्र बनता है.इस प्रकार इस संसारमें सर्व संबंधोंका परिवर्तन होता रहता है.
जणणी वसंततिलया भगिणी कमला य आसि भजाउ ।। धणदेवरस य एवम्मि भवे संसारवासम्मि ॥ १८..॥ वसंततिलका माता भगिनी कमला च ते ।।
एकत्र धनदेवस्य भार्या जाता भवे ततः ॥ १८७२ विजयोदया-जगणी पसंततिलपा धनदेवस्य जननी वसंततिलका | कमला भगिनी । ते उभे भाये जाते धनचम्य । नम्मित्रच भवे भावांतरेणु राबधान्यथाभावे किमस्ति त्राच्य ?
बंधकद वाहन लभंत पवाद । दुग्वं ततो यथनमुग्रबलं च पापं । नानादारीरबह कथेन दुःखं । प्राप्नोति केन विषयार्जितपापकर्म ।।
उक्तं च-कुर्थान्न तन्मदनओखतरनेवा। बड़ो विरुष्टबलपाणिविनुषधारः । कुर्वति दुसमधिक विषया नराणां तस्मात्यजति विषयान् परिरएतत्वाः । एवमय को लोकधर्मः ।।
मुलारा--आसि भज्जाओ जाते द्वे अपि मातृस्वसारी भायें । तस्मिन्नेव भचे,कि मांतरेषु संबंधान्यत्वे कश्यमित्यर्थः।
अर्थ-एकही भवमें धनदेव नामक मनुष्यके पसंततिलका माता और कमला नामक भगिनी दोनो पत्नी हुई थी. जब एकही भवमें ऐसे विचित्र संबंध होते हैं तो मवातर के संबंधोंमें कहनाही स्या' आगममें इसवि. पयमें ऐसा कहा है-एकही मक्में एक शरीर धारण करने में भी इस जीवको नाना प्रकारके अपवाद सहन करने परते हैं. उससे उसको दुःख क्यों न होगा अर्थात अपवादसे इस जीत्रको तीव्रदुःखानुभव होता है.विषयोपभोग करनेसे पापकर्मका बंध होता है.एक शरीरके साथ जीवकासंबंध होनेसे इसको इतना कष्ट होता है तो अनेक जन्मोंमें इसने आजतक अनंत शरीर धारण कर छोड दिये है तो इन देहोंके आश्रयसे अपवादजनित दुःख और अनंत दुःखदायक कर्मोका संबंध होनेसे कितना कष्ट हुआ होगा इसका विचार विचारी पुरुष मनमें कर सकते हैं.