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मूलाराधना
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उतना झन नहीं करता चलवान पुरुषका
रहनेवाला तीव्र धारका खद्ग भी लोगोंकी उतनी हानि नहीं करेगा. परंतु त्रिषयसुख मनुष्योंकी उनसे भी अत्यंत अधिक हानि करता है. अतिशय दुःख देता है. इसलिये तत्वदर्शी लोग ऐसे विषयोंका त्यागकर सुखी होते हैं. इसप्रकार ये लोकधर्म कष्टदायक है.
राया वि होइ दासो दासो यत्तणं पुणसुवेदि ॥
इय संसारे परिवहते ठाणाणि सव्वाणि ॥ १८०१ ॥ संसारे जायते यस्मिन्नृपोऽपि खलु किंकरः ॥
कीशी क्रियते तत्र रतिनिंदानिधानके ।। १८७३ ।।
विजयोदया श्रावि होइ दासी राजा दासो भवति, नीचैमार्जनात् दासो राजतां पुनहतैति उस्त्र कर्मण उदद्यात् । पर्व संसारे परिवर्तते सर्वाणि स्थानानि ॥
मूलाग— दासो नीचैर्गोत्रोदयात् ।
अर्थ- राजा भी जब उसको नीच गोत्रका उदय होता है तब भवांतर में दास होता है और दासभी उच्चगोत्र कर्मका उदय होने से भवांतर में राजा होता है. इस प्रकार इस संसार में सर्व स्थानों में परिवर्तन होता है.
कुरुवतेयभोगाधिगवि राया विदेहदेवदी
बच्चघरम्मि सुभोगो जाओ कीडो सकम्मेहिं ॥। १८०२ ॥ विदेशधिपती राजा तेजोरूपकुलाधिकः ॥
जातो बच्चों कीटः सुभोगः पूर्वकर्मभिः ॥ १८७३ ॥
विजयोदया - कुलरूयभोगाधियो वि कुलेन रूपेण तेजसा भोगेनाधिकोषि । विदेदजनपदाधिपती राजा सुभोगसंहः सुवचगृहे कीटो जातः स्वैः कर्मभिः प्रेरितः । उक्तं च दृष्टाः कचित्सुरमनुष्यगणप्रधानाः सर्वदीत वपुषः शशिकांतरूपाः ॥ भ्रास्त व पुनरन्यगर्ति पना हीना भवंति कुलक पधनमतायैः ॥
मूलारा - वञ्चकुडिम्म विष्ठागृहे । सुभोगो सुभोगाख्यो राजा सन् ॥
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आश्वास
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