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मूलाराधना
आश्वास
५ ज्ञानावरण कर्मका उदय आनेसे उपर्युक्त बुद्धि नष्ट हो जाती है. ज्ञानी पुरुष, ज्ञान और उपकरण इनका द्वेष करना, इनको छिपाना इनका नाश करना. इनके साथ मत्सरभाव रखना, इनमें विन उत्पन्न करना इनको अयोग्य बतलाना, इनमें दोष लगाना, इनको पीडा देना, अकालमें अध्ययन करना दुसरों की इंद्रिया विषाडना इत्यादि कारणोंस ज्ञानावरणीय कर्मका बंध होता है यह बंध अवग्रह ईहा, अवाय और धारणा रूप मतिज्ञान अपना मुरझान:सिकता नाश करता है.
१ ज्ञानको आच्छादन करनेवाला कर्म जब यह अपुण्यवान जीव बंध लेता है तब अचग्रह ईहा, अवाय और धारण ऐसे चारों ज्ञानोंसे भी पदार्थोका सम्या स्वरूप जानने में असमर्थ होता है.
(२ जो मनुष्य पदार्थोके विशेषधर्मोको नहीं जानता है वह नेत्रवान होकर भी अंधा है, सुनता हुआ भी बहिरा है, और जिव्हा युक्त होनेपर भी रसोंको नहीं जानता है ऐसा समझना चाहिये।
कर्मसे ढका हुआ यह कभी एकेंद्रिय, कभी द्वीद्रिय, श्रींद्रिय, चतुर्रािद्रिय और कमी असंत्री पंचद्रिय बनता है.
४ कर्माच्छादित यह जीव हितकर वस्तु को न देख सकता है न सुन सकता है और में उसका विचार करने में समर्थ होता है. कर्मके वश होकर भी न दान देता है और न धनका स्वयं उपभोग ले सकता है इसलिये ऐसा कर्माच्छादित जीव पशुके बराबरीका समझना चाहिये.
५ अल्प बुद्धि होनेसे मनुष्य अपने समीपका भी हितकर पदार्थका स्वरूप जानने में असमर्थ होता है. फिर जो श्रुतज्ञानसे ही जाना जाता है, जो परलोक हित करनेवाला है ऐसे पदार्थका स्वरूप वह अन्न कैसा जानेगा?
१ महाभयानक गुहाके सघन अंधकारमें प्रवेश करनेसे, आगाध पानी में प्रवेश करनेसे, दृढ़ ऐसे कैदखानेमें डाला जानेसे प्राधीको कृष्ट दायक अज्ञानका अनुभव आता है.
अंधकारमें प्रवेश, पानी में डूबना, कैदखानेमें डाला जाना इन बातोंस प्राणिओंको एक जन्ममें-ही कष्ट होगा परंतु अज्ञानजन्य दुःख अनंत भवतक प्राणिओका साथ नहीं छोड़ता है.
८ जो पुरुष स्वाभाविक बुद्धिम रहित है वह विशाल तज्ञान जो कि मनुष्यकी तीसरी आंख है धारण करनमें असमर्थ होता है.